महाराष्ट्र में लोकायुक्त और उप लोकायुक्त यह दोनों ही पद
फिलहाल रिक्त हैं। दो अलग कानून इसलिए बनाए गए थे कि प्रशासन और अधिकारियों के
अन्याय के खिलाफ गुहार लगाने के लिए इनमें से कम से कम एक कार्यालय हमेशा उपलब्ध
रहे। इन 15 सालों में
कुल तीन लोकायुक्त और उतने की उपलोकायुक्त नियुक्त किए गए। इनमें से अंतिम
लोकायुक्त जस्टिस पुरुषोत्तम बा. गायकवाड़ एक जुलाई 2014 को रिटायर कर गए। वहीं, अंतिम लोकआयुक्त जॉनी जोसेफ का
कार्यकाल पिछली 30 नवंबर को
खत्म हो गया। लेकिन सरकार की तरफ नई नियुक्ति को लेकर कोई अबतक सामने नहीं आई है।
एक आरटीआई से प्राप्त जानकारी से यह तथ्य उभरा है कि इसमें
शिकायत करने वालों की संख्या लगातार कम हुई है। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को
प्राप्त ब्योरे के अनुसार, दोनों
कार्यालयों में अब तक कुल 2,06,269 शिकायतें प्राप्त हुई हैं। उसमें से 1,34,749 शिकायतों का निपटान किया गया। जो
कि करीब 65 प्रतिशत ही
बैठता है। मतलब यह कि एक-तिहाई मामले अभी भी लंबित पड़े हैं। लोकायुक्त को पहले
पांच वर्षों के कार्यकाल में जोश देखा गया। वर्ष 2000 से लेकर 2005 तक हर साल नई शिकायतों के संख्या 10 हजार से ज्यादा दर्ज की गई। पिछले
कुछ सालों से यह पांच से सात हजार शिकायतें प्रति वर्ष तक सीमटकर रह गई है।
: लोकायुक्त और उपलोकायुक्त को दीवानी अदालतों को जांच पड़ताल के
लिए मिले सभी अधिकार बहाल किए गए हैं। लोकायुक्त कानून की धारा 11 (2) का इसमें उल्लेख है। इसके अलावा
धारा 11 (3) में यह उल्लेख है कि आईपीसी कानून की धारा 193 के तहत फौजदारी न्यायालय को
प्राप्त दर्जा इन्हें दिया गया हैं। बस यहीं उनके अधिकार सीमित हो जाते हैं।
लोकायुक्त को न तो सजा देने का अधिकार है और न ही किसी तरह की सजा कि सिफारिश करने
का। वह सरकार को केवल अपनी रिपार्ट पेश कर सकते हैं। खास मामलों में राज्यपाल को
रिपोर्ट भेज सकते हैं। यह रिपोर्ट विधानमंडल के सामने रखी जाती है। सामान्य भाषा
में कहा जाए तो 'पंच पकवान
वाला भोजन तो दिया, खाने के
दांत ही नहीं दिए। निवाला मुंह से उतरे कैसे?'
पिछले 15 वर्षों के कार्यकाल में मिली दो
लाख से ज्यादा शिकायतों में लोकायुक्त और उपलोकायुक्त ने कुल 2034 मामलों में कार्रवाई करने की
शिफारिश की है। यानी बमुश्किल एक प्रतिशत मामलों में कार्रवाई की सिफारिश की है।
इनको भी सरकार ने बहुत गंभीरता से लिया हो, ऐसी मिसालें नहीं के बराबर के
हैं। वर्ष 2005 में लोकायुक्त -उपलोकायुक्त कार्यालय ने केवल एक शिकायत पर कार्रवाई
की शिफारिश की। इसी एक मामले पर राज्यपाल को रिपोर्ट भी भेजी गई। निराशा की हालत
यह रही कि अगले दो सालों 2006 और 2007 में इस कार्यालय से राज्यपाल को एक भी रिपोर्ट कार्रवाई के लिए नहीं
भेजी गई। पिछले लोकायुक्त जस्टिस गायकवाड और उपलोकायुक्त जॉनी जोसेफ ने पिछले दो
सालों में मामलों के निपटारे में तेजी लाई है। लगभग दो हजार सिफारिशों में से डेढ़
हजार मामलों में शिकायतें इन्हीं के कार्यकाल में की गई है। फिर भी विश्वास की कमी
के चलते लोकायुक्त कार्यालयों को मिलने वाली शिकायतों की संख्या में इजाफा नहीं हो
पाया है।
महाराष्ट्र में सभी मंत्रियों को 'लोकसेवक' बताकर उनके खिलाफ लोकायुक्त में
शिकायत की जा सकती है। लेकिन मुख्यमंत्री को इस दायरे से बाहर रखा गया है।
मंत्रियों के खिलाफ दर्ज 127 मामलों में
केवल चार मामलों में लोकायुक्त ने कार्रवाई करने की सिफारिश की। मामले फाइलों में
बंद होकर रह गए। इस साल अक्टूबर तक मिले आंकड़े बताते हैं कि इस साल किसी भी
मंत्री के खिलाफ नई शिकायत दर्ज ही नहीं हुई। ऐसा 15 सालों में पहली बार हुआ है।
विश्वास की डोर इतनी कमजोर तो कभी नहीं थी।
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