Saturday, May 30, 2009

नालों की सफाई का काम अधूरा, बी एम सी को झेलनी पड सकती है दिक्कतें


With the monsoons ready to lash Mumbai, many citizens are worried that they will again have to undergo the annual misery of wading through flooded homes and streets only because the BMC failed to clean up choked drains and nullahs. People feel helpless in trying to get the municipality to act and find themselves stonewalled by red tape. The answer may lie in the use of a little known but powerful provision of the Criminal Procedure Code (CrPC), under which a common man can knock on the doors of the local magistrate and get a judicial order asking the municipality to do its job. Section 133 of the CrPC empowers a magistrate to pass an order for "removal of nuisance''. Thus, if citizens of a locality believe that constant dumping of debris in a nearby nullah or an obstruction to a drain is going to result in flooding and loss, then they can approach a magistrate under this section to get the BMC to put an end to such a nuisance. "It is a powerful provision in hands of the people,'' said advocate Pradeep Havnur. "It can be used to force the BMC to take action,'' he added. Lawyers pointed out that by resorting to this provision, citizens will not have to approach the Bombay high court by filing a writ or a Public Interest Litigation (PIL) every time they want the BMC to clean up a drain. On receiving a complaint, the magistrate is likely to order a preliminary inquiry and ask the BMC to submit a report on the citizens' grievances. Thereafter, he can also pass a conditional order asking the BMC to clean up the choked drain or nullah. In a landmark case decided by the Supreme Court, the municipal corporation of Ratlam, a town in Madhya Pradesh, was ordered to construct drains and toilets, provide proper sanitation and hygiene after residents filed a complaint under section 133 of the CrPC that the stench in their vicinity was unbearable. Interestingly, the term `nuisance' is not capable of an exact definition under the law and broadly means an act or omission which causes injury, danger or annoyance to common public. Thus, recently actress Kunika Lal used section 133 of CrPC to take action against vehicles that were parked illegally in her locality and were cause of trouble for motorists and residents alike



नालों की सफाई का काम अधूरा, बी एम सी को झेलनी पड सकती है दिक्कतें


With the monsoons ready to lash Mumbai, many citizens are worried that they will again have to undergo the annual misery of wading through flooded homes and streets only because the BMC failed to clean up choked drains and nullahs. People feel helpless in trying to get the municipality to act and find themselves stonewalled by red tape. The answer may lie in the use of a little known but powerful provision of the Criminal Procedure Code (CrPC), under which a common man can knock on the doors of the local magistrate and get a judicial order asking the municipality to do its job. Section 133 of the CrPC empowers a magistrate to pass an order for "removal of nuisance''. Thus, if citizens of a locality believe that constant dumping of debris in a nearby nullah or an obstruction to a drain is going to result in flooding and loss, then they can approach a magistrate under this section to get the BMC to put an end to such a nuisance. "It is a powerful provision in hands of the people,'' said advocate Pradeep Havnur. "It can be used to force the BMC to take action,'' he added. Lawyers pointed out that by resorting to this provision, citizens will not have to approach the Bombay high court by filing a writ or a Public Interest Litigation (PIL) every time they want the BMC to clean up a drain. On receiving a complaint, the magistrate is likely to order a preliminary inquiry and ask the BMC to submit a report on the citizens' grievances. Thereafter, he can also pass a conditional order asking the BMC to clean up the choked drain or nullah. In a landmark case decided by the Supreme Court, the municipal corporation of Ratlam, a town in Madhya Pradesh, was ordered to construct drains and toilets, provide proper sanitation and hygiene after residents filed a complaint under section 133 of the CrPC that the stench in their vicinity was unbearable. Interestingly, the term `nuisance' is not capable of an exact definition under the law and broadly means an act or omission which causes injury, danger or annoyance to common public. Thus, recently actress Kunika Lal used section 133 of CrPC to take action against vehicles that were parked illegally in her locality and were cause of trouble for motorists and residents alike



Wednesday, May 27, 2009

राज ने कहा कि चुनावी तालमेल में कुछ भी गलत नहीं

महाराष्ट्र निर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे ने कहा है कि हाल के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी की
सफलता दर्शाती है कि यह बदलाव के लिए मतदान था। अग्रणी मराठी दैनिक 'महाराष्ट्र टाइम्स' में एक लेख में राज ने कहा कि कुछ लोग मेरी सफलता को मान्यता नहीं देना चाहते। मराठी वोटरों के पास अब एक विकल्प है। वे सभी राजनैतिक दलों द्वारा उनकी परवाह नहीं किए जाने से ऊब चुके हैं। उन्होंने कहा कि उनके विरोधी दुष्प्रचार कर रहे हैं कि जिन लोगों ने उन्हें मत दिया, उन्होंने अपना मत बर्बाद किया। उन्होंने कहा कि शिवेसना भाजपा गठबंधन को महाराष्ट्र की सत्ता में आने में कुछ वर्ष लगे। क्या इसका मतलब यह है कि शुरुआती वर्षों में जिन लोगों ने उन्हें अपना मत दिया, उन्होंने अपना वोट बर्बाद किया? एमएनएस प्रमुख ने कहा कि युवाओं और महिलाओं ने बड़ी तादाद में 12 सीटों पर उनके उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान किया। राज ठाकरे के मुताबिक मेरे समर्थकों में वे लोग शामिल हैं, जो मौजूदा स्थापित पार्टियों से ऊब चुके हैं या जिन्होंने पहले कभी मतदान नहीं किया था। राज ने कहा कि चुनावी तालमेल में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन इसे सत्ता के लिए विचारधारा और उद्देश्यों को दरकिनार करने की कीमत पर नहीं किया जाना चाहिए।

Monday, May 25, 2009

कारोबार में मंदी के चलते यहाँ के व्यापारियों ने भी आत्महत्या करना शुरू कर दिया है।

कर्ज में डूबे किसानों की तरह अब कारोबार में मंदी के चलते यहाँ के व्यापारियों ने भी आत्महत्या करना शुरू कर दिया है। शनिवार रात शहर के एक हार्डवेयर व्यापारी ने गले में फंदा लगाकर मौत को गले लगा लिया। पुलिस सत्रों के अनुसार तिलक चौक स्थित मयुर बिल्डिंग में रहने वाले बीजेपी युवा मोर्चा के जिला उपाध्यक्ष विनोद कुमार बाबूलाल जैन (32) शहर के तीन बत्ती इलाके में हार्डवेयर की दुकान चलाते थे। बताया जाता हे कि मंदी के चलते उनका कारोबार काफी गड़बड़ा गया था। जिसके कारण उनके ऊपर कर्ज भी बढ़ गया था। यही कारण है कि शनिवार रात लगभग आठ बजे बीजेपी नेता विनोद कुमार जैन ने छत के हुक से गले में फंदा लगाकर आत्महत्या कर लिया। निजामपुर पुलिस ने आकस्मिक मृत्यु का मामला दर्ज कर लिया है। लेकिन जैन के आत्महत्या करने के कारणों का सही पता नहीं चला है। विनोद जैन के आत्महत्या को लेकर यहाँ के व्यापारियों सहित बीजेपी कार्यकर्ता काफी सकते में है।

Saturday, May 23, 2009

अगला मुख्यमंत्री तय करेंगे राज ठाकरे

लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र नवनिर्माण पार्टी (एमएनएस) के शानदार प्रदर्शन से राज ठाकरे खासे उत्साहित हैं। राज ठाकरे का दावा है कि विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी शानदार प्रदर्शन करेगी। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा यह वह ही तय करेंगे। गौरतलब है कि एमएनएस को लोकसभा चुनावों में 21 फीसदी वोट मिले थे। हालांकि उनकी पार्टी कोई भी सीट जीतने में नाकाम रही थी। मुंबई महानगर की छह सीटों पर एमएनएस ने एनडीए के वोट बैंक में जबर्दस्त सेंध लगाई थी। राज ठाकरे ने शिव सेना चीफ बाल ठाकरे के उस बयान पर कॉमेन्ट करने से इनकार कर दिया, जिसमें ठाकरे ने शिव सेना की हार के लिए एमएनएस को जिम्मेदार ठहराया था। राज ने कहा, 'बाला साहेब मुझे प्यार करते हैं। उन्हें मेरे बारे में कहने का हक है। मैं उनकी बात से आहत नहीं हूं। उन्होंने बीजेपी से किसी भी तालमेल से इनकार किया। ठाकरे ने कहा कि लोग कह रहे थे कि एमएनएस के कैंडिडेट बुरी तरह हारेंगे। लेकिन हम काफी वोट जुटाने में कामयाब रहे। उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनावों में हमारे वोट करोड़ों में होंगे। राज ठाकरे के इस दावे को प्रदेश राजनीति में गंभीरता से लिया जा रहा है। माना जा रहा है कि इस बार भले राज ठाकरे के वोटों से सिर्फ शिवसेना-बीजेपी को नुकसान हुआ हो, विधानसबा चुनाव में ऐसा नहीं होगा। इस लिहाज से राज ठाकरे का दावा कांग्रेस जैसे दलों के लिए भी खतरे की घंटी हो सकता है।

शव जेजे हॉस्पिटल के मॉर्ग में रखे हुए हैं।

मुंबई टेरर अटैक की घटना को लगभग छह महीने बीत चुके हैं, लेकिन इस हमले में मारे गए नौ पाकिस्तानी आतंकवादियों के शवों का अभी तक संस्कार नहीं किया गया है। इनके शव जेजे हॉस्पिटल के मॉर्ग में रखे हुए हैं। अधिकारियों ने आशंका जताई है कि अगर इनका संस्कार नहीं किया गया तो ये सड़ने लगेंगे। मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमंट सेक्रटरी भूषण गगरानी ने बताया कि हालांकि शव अभी भी मॉर्ग में रखे हुए हैं, लेकिन इनके जल्द ही सड़ने की संभावना है। डॉक्टरों का कहना है कि सारे उपायों के बाद एक निश्चित समय सीमा तक ही मॉर्ग में शवों को सुरक्षित रखा जाता है। लेकिन, शहर में आर्द्रता को देखते हुए शवों के सड़ने की संभावना है।

Thursday, May 21, 2009

बेस्ट के नए रूटों का किराया साधारण किराए से दो से सात रुपया अधिक

बेस्ट की बसों से वर्ली-सी लिंक और हाइवे के नए रूटों से यात्रा करने वाले यात्रियों को अपनी जेब ढीली करनी होगी। बेस्ट के नए रूटों का किराया साधारण किराए से दो से सात रुपया अधिक होगा। बढ़े किराए के बाबत बेस्ट का कहना है कि ये सब सुपरफास्ट बसें हैं और यात्रियों को 20 से 30 मिनट कम समय में ही उनकी मंजिल तक पहुंचा देंगी। वर्ली-सी लिंक, हाइवे के अलग रूट पर बेस्ट को बस चलाने की अनुमति राज्य सरकार ने पहले दे दी है। सी लिंक शुरू होने के बाद बेस्ट की बस चलने लगेगी। इसी तरह से पूर्वी व पश्चिमी एक्सप्रेस पर भी बेस्ट सुपरफास्ट बस चलाने वाली है। ठाणे से सायन और दहिसर से बांदा के बीच ये बसे चलाई जाएंगी। बेस्ट समिति की बैठक में गुरुवार को जब यह प्रस्ताव रखा तब कांग्रेस के शिवजी सिंह और शीतल म्हात्रे का कहना था कि किराए राज्य सरकार ने इन रूटों पर बस चलाने के लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं ले रही है ऐसे में बेस्ट को अतिरिक्त शुल्क लेने का क्या मतलब। इस पर बेस्ट के जीएम उत्तम खोब्रागडे ने कहा कि ये बसें सभी स्टाप पर नहीं रुकेंगी और लोगों को कम समय में उनकी मंजिल तक पहुंचा देंगी।

Monday, May 18, 2009

राज ठाकरे से सभी संबंध तोड़ लिए हैं।

शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने अपने भतीजे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) प्रमुख राज ठाकरे से सभी संबंध तोड़ लिए हैं। बाल ठाकरे ने कहा, 'कोई भी व्यक्ति जो मराठी का दुश्मन होगा वह मेरा भी दुश्मन होगा।' माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में मुंबई में शिवसेना-बीजेपी गठबंधन की हार की वजह से बाल ठाकरे ने यह कदम उठाया है। एमएनएस मुंबई में शिवसेना के पारंपरिक वोट में सेंध लगाने में कामयाब हुई थी। राज ठाकरे से रिश्ते तोड़ने के बाल ठाकरे के फैसले पर एमएनएस के उपाध्यक्ष वी.सारस्वत ने कहा कि यह चाचा और भतीजे के बीच का मामला है और इस पर किसी को टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है।

Tuesday, May 12, 2009

वोट देने के बाद सिविक गवर्नंस या विकास की योजनाओं में आम नागरिकों की कोई भी भूमिका नहीं रह जाती।

दुनिया के लगभग सभी लोकतांत्रिक देशों में अब यह महसूस किया जाने लगा है कि सिर्फ वोट देकर सरकार चुनने की व्यवस्था से प्रशासन में जनता की पूरी भागीदारी नहीं होती। इसलिए अनेक देशों में अब पार्टिसिपेटरी गवर्नंस को बढ़ावा देने वाले मॉडल विकसित किए जा रहे हैं। इनके बहुत ही उत्साहवर्द्धक नतीजे सामने आ रहे हैं। अमेरिका में हर मुहल्ले की अपनी स्थानीय असेंबली होती है। वहां एक फुटपाथ भी बनना हो तो म्युनिसिपैलिटी हरेक बाशिंदे से उसकी राय पूछती है। स्थानीय नागरिक निश्चित तारीख को टाउन हॉल में उपस्थित होते हैं और ऐसी योजनाओं पर अपना फैसला सुनाते हैं। आपने वॉलमार्ट का नाम सुना होगा। इस प्रसिद्ध रिटेल चेन को ओरेगांव में अपना स्टोर खोलना था। इस पर ओरेगांव के नागरिक टाउन हॉल में इकट्ठा हुए। विचार-विमर्श के दौरान उन्होंने पाया कि इससे इलाके की छोटी-छोटी दुकानें बंद हो जाएंगी, जिन्हें ममियां और पापा अपने खाली समय में चलाते हैं। इससे बेरोजगारी फैलेगी। नागरिकों के फैसले के बाद वॉलमार्ट को वहां स्टोर खोलने से मना कर दिया गया। क्या अपने यहां सेज या शॉपिंग मॉल के लिए जमीन मुहैया कराते समय प्रशासन, स्थानीय जमीन अधिग्रहण करने के अलावा जनता से किसी भी तरह की कोई बात करता है? इसी तरह ब्राजील का एक शहर है पोर्तो अलेग्रे। इस शहर में 1989 से स्थानीय बजट बनाते समय वहां के नागरिकों को भी सहभागी बनाया जा रहा है। पंद्रह लाख की आबादी वाले इस शहर में हर साल लगभग 20 करोड़ डॉलर की रकम जनता अपनी इच्छा से खर्च करती है, जिसका प्रावधान मुख्य बजट में अलग से किया जाता है। शहर के विभिन्न इलाकों, आय वर्गों, पेशों और आयु वर्गों के प्रतिनिधि मिल कर यह तय करते हैं कि इस बार शहर के किस हिस्से में किस चीज का विकास किया जाना चाहिए। सर्वेक्षणों में इस शहर के लोगों की क्वॉलिटी ऑफ लाइफ सबसे उम्दा पाई गई है। इस पाटिर्सिपेटरी बजटिंग का नतीजा यह भी हुआ है कि वहां शत प्रतिशत टैक्स कलेक्शन होता है और शत प्रतिशत वोटिंग होती है। स्विटजरलैंड में तो संवैधानिक व्यवस्था ही ऐसी है कि पचास हजार मतदाता मिल कर अपने हस्ताक्षर द्वारा वहां की सरकार द्वारा बनाए गए किसी भी कानून को चुनौती दे सकते हैं और उस पर राष्ट्रीय स्तर पर जनमत संग्रह करा सकते हैं। क्या भारत में आबादी का कितना भी बड़ा हिस्सा किसी कानून को बदलवाने के लिए कोई प्रक्रिया शुरू कर सकता है? भारतीय शासन व्यवस्था में तीन ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर वोटर या जनता का कोई वश नहीं चलता और जिनमें दखल देने की जरूरत स्पष्ट रूप से महसूस की जाती है। ये तीनों हैं - सरकारी तंत्र का फंक्शन, उसके फंक्शनरी और फंड। अभी तक इन तीनों पर सिर्फ नेताओं और सरकारी कर्मचारियों का ही कब्जा रहा है। लेकिन अब देश में सहभागी और स्वराज जैसे कुछ अभियान चलाए जा रहे हैं जो कहते हैं कि इन तीनों में यथासंभव जनता को भी भागीदार बनाया जाए। यह काम कैसे किया जाएगा- इसके लिए कई मॉडल हो सकते हैं। हमारे और आपके मॉडल अलग-अलग भी हो सकते हैं, लेकिन सहभागिता जरूरी है। मान लीजिए कि आपके इलाके के स्कूल का कोई शिक्षक (फंक्शनरी) बहुत गैरहाजिर रहता है, तो इलाके के लोग क्या उसकी तनख्वाह रोक सकते हैं? यदि इलाके का थानेदार भ्रष्ट है, तो क्या स्थानीय नागरिक उसका तबादला करवा सकते हैं? आपके क्षेत्र में पानी की सप्लाई (फंक्शन) ठीक नहीं है, तो क्या आप सप्लाई लाने वाले पाइप की मोटाई बढ़वा सकते हैं? या पानी की बड़ी टंकी बनवा सकते हैं? क्या शराब की दुकान का लाइसेंस क्षेत्र के लोगों से पूछने के बाद जारी किया जाता है? या मोहल्ले की सड़क की मरम्मत पर किए जाने वाले फंड का फैसला और उसके खर्च की जांच स्थानीय लोगों से कराई जाती है? यदि ऐसा नहीं होता तो यह सच्चा लोकतंत्र नहीं है। लोकतंत्र का मतलब सिर्फ म्यूनिसिपल/ पंचायत, विधानसभा या लोकसभा के चुनाव में वोट देना भर नहीं हो सकता। बीते छह दशकों का अनुभव यही बताता है कि वोट देने के बाद सिविक गवर्नंस या विकास की योजनाओं में आम नागरिकों की कोई भी भूमिका नहीं रह जाती। हमारे ही क्षेत्र के प्रशासन और विकास के मामले में हम कुछ भी नहीं, पर सरकार द्वारा नियुक्त कर्मचारी सारे अधिकार रखता है, यहां तक कि हमारी आवाज या शिकायत सुनना- न सुनना या उसे मानना- नहीं मानना भी उसके अपने विवेक पर निर्भर करता है। वोट डालते ही हमारे हाथ से सारी सत्ता निकल कर चंद दूसरे लोगों के हाथों में पहुंच जाती है, जिसका प्रयोग वे अपनी इच्छा से या निरंकुश तरीके से करने को स्वतंत्र होते हैं। यह सच्चा लोकतंत्र नहीं है। इससे नागरिकों को वास्तविक अधिकार नहीं मिल पाए हैं। सहभागी नागरिकों के सशक्तीकरण के लिए चलाया जाने वाला अभियान है। इस आम चुनाव के दौरान भी यह बात खूब जोर-शोर से उठी है कि उन्हीं प्रत्याशियों या पार्टियों को वोट दें जो अपने कार्यकाल में जन सहभागिता को मजबूत बनाने का वादा करें। यदि अपने देश में डेमोक्रेसी को सचमुच सफल बनाना है, तो नागरिकों को निर्णय और विकास की योजनाओं में सहभागी बनाना होगा। कुछ लोगों को यह अवधारणा अभी अपरिपक्व और भ्रामक लगती है। कुछ लोग पूछ भी रहे हैं कि स्थानीय लोगों की राय से शासन कैसे चल सकता है? मोहल्ले के आधे लोग कहेंगे कि पूरब वाली गली की मरम्मत करो, दूसरे आधे कहेंगे कि पश्चिम वाली गली की मरम्मत करो। इसके अलावा पार्षद या विधायक स्थानीय लोगों की बात सरकार तक पहुंचाने के लिए ही तो चुने जाते हैं, उन्हें प्रतिनिधि चुनने का क्या फायदा? इस तरह के प्रश्न इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि हम पार्टिसिपेटरी गवर्नंस जैसे किसी सिस्टम के आदी नहीं हैं। लेकिन क्या इलाके के बुजुर्गों की कोई कमिटी बारी-बारी से थाने में बैठकर पुलिस के कामकाज और व्यवहार पर निगरानी रख सकती है? क्या स्कूली बच्चों की मांएं एक-एक दिन ड्यूटी बांध कर मिड डे मील की निगरानी कर सकती हैं? क्या ऐसी व्यवस्था की जा सकती है कि माताओं की इस कमिटी की सलाह गंभीरता से सुनी जाए और उनकी शिकायतों पर अनिवार्य रूप से कार्रवाई की जाए। क्षेत्र के विकास के लिए जारी फंड के बारे में क्या नागरिकों से पूछा जा सकता है कि पहले मंदिर में लाइट लगाई जाए या स्कूल की मरम्मत कराई जाए। पहले पार्क बने या अस्पताल? देश में ऐसे कुछ मॉडल बेहद सफलतापूर्वक काम कर रहे हैं।

पुलिस कमिश्नर को ही इसका शिकार बना दिया

मुंबई में जमीन-फ्लैट के नाम पर धोखाधड़ी आम बात है, पर पुलिस कमिश्नर को ही इसका शिकार बना दिया जाए तो बात हैरान करने वाली है। यहां गिरगांव के खेतवाड़ी में एक पुरानी इमारत है। 3440 वर्ग फुट में फैली इस इमारत में आठ अपार्टमेंट थे, जो पुलिस कमिश्नर सहित आठ पुलिस अफसरों को किराए पर दिए जाते थे। सन 2000 में एक बिल्डर ने इसे रिडेवलेप कर पुलिस अफसरों को ही देने का वादा किया। इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ, पर नौ साल बीत रहे हैं पुलिस वाले अभी फ्लैट का इंतजार ही कर रहे हैं। जबकि डेवलेपर ने फ्लैट बना कर इन्हें ओपेन मार्किट में ऊंचे दाम पर बेच दिया। पिछले हफ्ते इस मामले पर मुंबई हाई कोर्ट के जज दिलीप भोसले ने बिल्डर प्रदीप गोरगांधी को गिरफ्तार करने के आदेश दिए। यह भी आदेश दिया कि अगर वह एंटिसिपेटरी बेल की अर्जी लगाता है तो उसे 25000 की जमानत राशि पर छोड़ा जाए। यह इमारत 1940 के पहले की है। रिडेवलेप करने की योजना पर 1990 से काम शुरू किया गया था। 2007 में पुलिस कमिश्नर ने इस मामले में धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज कराई थी।

Saturday, May 9, 2009

संजय दत्त को फिल्मों की शूटिंग के लिए छह महीने के लिए विदेश जाने की इजाजत दे दी।

सुप्रीम कोर्ट ने मुम्बई में वर्ष 1993 में हुए बम धमाकों के मामले में जमानत पर चल रहे अभिनेता
और समाजवादी पार्टी (एसपी) के महासचिव संजय दत्त को फिल्मों की शूटिंग के लिए छह महीने के लिए विदेश जाने की इजाजत दे दी। दत्त ने फिल्मों की शूटिंग के लिए इस साल जून से दिसंबर के बीच दक्षिण अफ्रीका, कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन, जाम्बिया और नामीबिया जाने की इजाजत देने के लिये सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी थी। दत्त द्वारा अर्जी के साथ पेश किए गए कार्यक्रम के मुताबिक उन्हें इन देशों में 'नो प्रॉब्लम' 'डबल धमाल' 'सनकी' और 'इंडियंस' फिल्मों की शूटिंग करनी है। दत्त को 1993 बम धमाकों के मामले में टाडा अदालत ने दोषी मानकर छह साल कैद की सजा सुनाई थी। उन्हें देश से बाहर जाने के लिए उच्चतम न्यायालय की इजाजत लेना जरूरी होता है। दत्त की लखनऊ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की अर्जी को उच्चतम न्यायालय ने नामंजूर कर दिया था। अब उन्हें विदेश जाने की सशर्त अनुमति दे दी गई है। दत्त को 5 जनवरी 2010 को विदेश से मुम्बई लौटने पर सीबीआई की स्पेशल टास्क फोर्स के पास अपना पासपोर्ट जमा कराना होगा।

Friday, May 1, 2009

ठाकरे ने जेठमलानी को 2001 के संसद हमले के दोषी अफजल गुरु का वकील बताया था।

पूर्व कानून मंत्री राम जेठमलानी ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे के खिलाफ केस दर्ज करने के लिए पुलिस से कंप्लेंट की है। ठाकरे ने जेठमलानी को 2001 के संसद हमले के दोषी अफजल गुरु का वकील बताया था। इससे जेठमलानी खफा हैं। कुछ दिन पहले उन्होंने ठाकरे को कानूनी नोटिस भी भेजा था। अब जेठमलानी ने शिवाजी पार्क थाने के सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर को भेजी कंप्लेंट में कहा है कि ठाकरे पर गलत तथ्य देकर लोगों को गुमराह करने के आरोप में केस दर्ज किया जाए। जेठमलानी ने कहा है कि मुझे बार-बार अफजल का वकील बताकर ठाकरे सस्ती लोकप्रियता हासिल करना चाहते हैं, इससे लोगों और मेरे मुवक्किलों में गलतफहमी फैल रही है।

आज से देश में न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) शुरू हो रही है।

आज से देश में न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) शुरू हो रही है। नए सरकारी कर्मचारियों के लिए यह पहले से लागू थी। अब इसे सभी के लिए खोल दिया गया है। यह सोशल सिक्यूरिटी के लिए उठाया गया कदम है। क्या है एनपीएस यह पीएफ की तरह तयशुदा रिटर्न वाली स्कीम नहीं है। इसका पैसा शेयर, सरकारी बॉण्ड और कॉरपोरेट बॉण्ड में लगाया जाएगा। फंड मैनिज करने का काम 6 कंपनियों को सौंपा गया है। पेंशन फंड एंड डिवेलपमंट ऑथॉरिटी उन पर नजर रखेगी। क्या हैं नियम एनपीएस 58 साल की उम्र के बाद फायदा देगी। बीच में पैसा नहीं निकाला जा सकता। यह तय करने का हक इन्वेस्टर को है कि तीनों विकल्पों में से किसमें कितना पैसा लगे। यह काम फंड मैनिजर पर भी छोड़ा जा सकता है। किसी भी हाल में शेयरों में 50 फीसदी से ज्यादा नहीं लगाया जा सकता। क्या है लागत इस स्कीम का सारा हिसाब-किताब नैशनल सिक्यूरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (एनएसडीएल) रखेगा। वहां अकाउंट खुलवाने के लिए 50 रुपये देने होंगे। सालाना चार्ज 350 रुपये है। हर ट्रांजेक्शन की फीस 10 रुपये होगी। आसान पहुंच के लिए कुछ बैंकों को पॉइंट ऑफ प्रजेंस बनाया गया है। उनकी ब्रांच में जाकर अकाउंट खुलवाया जा सकता है। इसका चार्ज 20 रुपये होगा। ट्रांजेक्शन फीस भी 20 रुपये है। क्या यह सस्ती है म्युचुअल फंड में लगभग सवा दो फीसदी का एंट्री लोड और डेढ़ फीसदी का मैनिजमंट चार्ज होता है। इसके मुकाबले एनपीएस में फीस 0.0009 फीसदी ही बैठती है। लेकिन अकाउंट के चार्ज इसका मजा खराब कर रहे हैं। यह किफायती तभी होगा जब ज्यादा पैसा लगाया जाए। गौरतलब यह भी है कि इस स्कीम में किसी भी स्टेज पर टैक्स छूट नहीं है। ऑथॉरिटी ने सरकार से इसकी मांग की है।