Wednesday, October 29, 2014

बीजेपी ने शिवसेना को नजरंदाज कर दिया

देवेंद्र फडनवीस को महाराष्ट्र में विधायक दल का नेता चुनकर बीजेपी ने अकेले सरकार बनाने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। समर्थन के बारे में शिवसेना के आगे बढ़-बढ़कर बयान देने के बाद भी बीजेपी ने उसे अभी तक तवज्जो नहीं दिया है। सूत्रों का कहना है कि बीजेपी नेतृत्व चाहता है कि शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे पहले दिए गए अपने तीखे बयानों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से माफी मांगें।
एक केंद्रीय मंत्री ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को बताया, 'बीजेपी-शिवसेना का गठबंधन तो तय है। बस समय की बात है, लेकिन हमें उन्हें प्रधानमंत्री और अमित शाह के ऊपर की गई बयानबाजी को लेकर नाराजगी का अहसास कराना चाहते हैं। उन्हें माफी मांगनी पड़ेगी।'
चुनाव प्रचार के दौरान उद्धव ठाकरे ने बीजेपी के स्टार प्रचारकों को अफजल खान की औलाद के समान बताया था। तुलजापुर में एक रैली को संबोधित करते हुए उद्धव ने कहा था, 'वे क्या चाहते हैं? पहले मोदी आए और अब उनकी पूरी कैबिनेट महाराष्ट्र में प्रचार करने आ गई। वे अफजल खान की औलाद की तरह हैं और राज्य को फतह करना चाहती हैं।'
इसके अलावा चुनाव प्रचार थमने के अगले दिन शिवसेना मुखपत्र 'सामना' में छपे लेख से भी बीजेपी नेतृत्व आहत है। इसमें लिखा गया था, 'लोकसभा में जीत के बाद बीजेपी ने शिवसेना को नजरंदाज कर दिया। यदि शिवसेना ने बीजेपी स्‍टाइल में ही लोकसभा चुनावों से पहले दांव मारा होता तो मोदी के बाप दामोदरदास भी बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं दिला पाते।'
सूत्रों का कहना है कि बीजेपी ने शिवसेना तक संदेश पहुंचा दिया है कि वह सार्वजनिक या निजी तौर से माफीनामा चाहती है। इसके साथ ही पार्टी यह भी चाहती है कि वह महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार को बिना शर्त समर्थन देने की घोषणा करे। देवेंद्र फडनवीस 31 अक्टूबर को मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं। पार्टी के एक नेता ने कहा कि हम नहीं चाहते हैं कि शिवसेना से तब तक गठबंधन किया जाए।
बीजेपी के महासचिव जे पी नड्डा ने कहा शिवसेना के साथ गठबंधन को लेकर बातचीत जारी है। बीजेपी के सूत्रों का मानना है कि एनसीपी के बाहर के समर्थन से सरकार चलाने के बजाय शिवसेना के साथ गठबंधन लंबे समय में पार्टी के लिए फायदेमंद रहेगा। इसके अलावा एनसीपी के साथ जाने से पार्टी की छवि को भी नुकसान पहुंचेगा।
फडनवीस खुद ने भी चुनाव प्रचार के दौरान एनसीपी के दागी मंत्रियों के खिलाफ अभियान चालाया था। इसके साथ ही बीजेपी इस बार शरद पवार के गढ़ माने जाने वाले पश्चिम महाराष्ट्र में सेंध लगाने में कामयाब रही है। ऐसे में एनसीपी को लेकर नरम रुख उस इलाके में पार्टी कार्यकर्ताओं के उत्साह को ठंडा कर सकता है।

Monday, October 27, 2014

शिव सेना में नाराजगी

शिव सैनिक नाराज हैं कि उनकी पार्टी बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने जा रही है। विरोध जताने के लिए वे पोस्टरों और बिल बोर्ड्स का सहारा ले रहे हैं। इनमें शिव सैनिकों ने अपने नेताओं से 'आत्मसम्मान' बचाने की अपील की है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में बीजेपी की लीडरशिप में बनने वाली सरकार में शिव सेना को शामिल नहीं होना चाहिए। सेवड़ी जैसे शिव सेना के गढ़ माने जाने वाले इलाकों में पिछले दो दिनों में ऐसे पोस्टर्स और बिल बोर्ड्स बड़ी संख्या में लगे हैं।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि शिव सैनिकों की ओर से पार्टी लीडरशिप से इस तरह के सवाल पूछने का यह शायद पहला मामला है। उन्होंने ठाकरे परिवार के फैसलों का कभी भी खुलकर विरोध नहीं किया है। उनके मुताबिक, इससे पता चलता है कि बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने को लेकर शिव सेना कार्यकर्ताओं में कितनी नाराजगी है। अप्रैल तक राज्यसभा में शिव सेना के सांसद रहे भरत कुमार राउत ने ट्वीट किया, 'उम्मीद करता हूं कि शिव सेना नेता संकेत को समझेंगे और विपक्ष में बैठेंगे।'
राउत का कहना है कि शिव सेना सिर्फ झुक नहीं रही है बल्कि बीजेपी उसे रेंगने को मजबूर कर रही है। शिव सेना को पसंद का पोर्टफोलियो नहीं मिल रहा है और न ही मंत्रियों की संख्या तय करने के मामले में उसकी चल रही है। इसके बावजूद शिव सेना बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाना चाहती है। उसकी वजह यह है कि पार्टी के कुछ नेता सत्ता चाहते हैं। राउत का अभी शिव सेना से कोई रिश्ता नहीं है। उन्होंने कहा कि वह बीजेपी के हाथों शिव सेना को इतनी शर्मिंदगी उठाते देखकर हैरान हैं।
राउत के मुताबिक, 'शिव सेना विपक्ष में क्यों नहीं बैठ सकती? पार्टी के कुछ नेता मंत्री बनना चाहते हैं। कुछ को सरकारी बॉडीज में अपॉइंटमेंट की उम्मीद है। लेकिन क्या पार्टी इसकी इतनी ज्यादा कीमत चुकाने को तैयार है? अगर बाल ठाकरे जीवित होते तो पार्टी को यह मंजूर होता!'
राउत के मुताबिक, शिव सेना को बीएमसी के लिए बीजेपी के सपोर्ट की जरूरत है। इसलिए उद्धव ठाकरे शायद बीजेपी से हाथ मिलाना चाहते हों। राउत ने बताया, 'बीएमसी शिव सेना के लिए ऑक्सिजन की तरह है। अगर सेना के पास बीएमसी की सत्ता नहीं होगी तो उसके लिए वजूद बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा।' कई शिव सैनिकों ने कहा कि वे पार्टी के बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने से खुश नहीं हैं।
साउथ मुंबई से एक सेना शाखा प्रमुख ने कहा, 'हमने बीजेपी के साथ इन चुनावों में जबर्दस्त जंग लड़ी है। हमने एक दूसरे के बारे में क्या कुछ नहीं कहा है। अब हम एक साथ होने जा रहे हैं। यह ठीक नहीं है। हमें सुनने को मिल रहा है कि दिल्ली में हमारे नेताओं के साथ बीजेपी को बात करने का समय तक नहीं मिला। ऐसे में हम खुश कैसे हो सकते हैं?'

Friday, October 24, 2014

डिनर में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भी हिस्सा लेंगे

महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए फिर से एक होने का संकेत देते हुए शिवसेना ने कहा है कि उसके सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से एनडीए नेताओं को दिए जाने वाले डिनर में शामिल होंगे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस डिनर में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भी हिस्सा लेंगे। शिवसेना ने कहा है कि वह और बीजेपी दोनों का मकसद महाराष्ट्र में एक स्थिर सरकार देना है।
शिवसेना के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद अनिल देसाई ने कहा, 'हमसे उद्धव ठाकरे ने दिल्ली में बीजेपी नेताओं से मिलने के लिए कहा था और बातचीत बहुत सकारात्मक रही। चुनाव के नतीजों से साफ है कि महाराष्ट्र में एक पार्टी अकेले सरकार नहीं बना सकती है। लोगों ने दोनों दलों को अच्छा जनादेश दिया है क्योंकि वह एक स्थिर सरकार चाहते हैं। लोगों की भावनाओं का ध्यान रखते हुए हम महाराष्ट्र में निश्चित तौर पर स्थिर सरकार देंगे।'
उन्होंने कहा कि वह साथी नेता सुभाष देसाई के साथ बुधवार को दिल्ली में बीजेपी नेताओं से मिले थे। मुलाकात में केवल शुरुआती बातचीत हुई। साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार बनाने के लिए सोमवार से बातचीत शुरू हो जाएगी।
सीएम के सवाल पर देसाई का कहना था कि बीजेपी को ज्यादी सीटें मिली हैं इसलिए यह फैसला उनका ही होगा, लेकिन बाकी चीजों पर दोनों दलों के बीच बातचीत होगी। 288 विधानसभा सीटों में हुए चुनावों में बीजेपी को 123 सीटें मिली हैं जो कि बहुमत से 22 सीटें कम हैं। शिवसेना को 63 सीटें मिली हैं। कांग्रेस को 42 और एनसीपी को 41 सीटों पर जीत मिली।

Wednesday, October 22, 2014

हार्दिक शुभेच्छा

सभी पाठकों को दीपावली की हार्दिक शुभेच्छा ।


(डॉ. राजेन्द्र कुमार गुप्ता)

शिवसेना भी बीजेपी को किसी कीमत पर बख्शने को तैयार नहीं

एक तरफ बीजेपी शिवसेना को एनसीपी के समर्थन का डर दिखा कर उससे बिना शर्त समर्थन पाने का माइंड गेम केल रही है, वहीं शिवसेना भी बीजेपी को किसी कीमत पर बख्शने को तैयार नहीं है। हां इतना जरूर है कि वह अब सीधे-सीधे बीजेपी पर वार करने के बजाए 'कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना' वाली स्टाइल में बीजेपी पर वार कर रही है।
बीजेपी को एनसीपी के समर्थन के मुद्दे पर शिवसेना का ताजा बयान उसकी इसी स्ट्रेटेजी को उजागर करता है। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामान के जरिए कहा है कि एनसीपी द्वारा बीजेपी को बिना शर्त समर्थन देने की पेशकश घोटाले में दागी अपने भ्रष्ट नेताओं को बचाने के लिए है। अगर इस बयान के दूसरे पहलू को देखा जाए तो इसका यह मतलब भी निकलता है कि बीजेपी एनसीपी का समर्थन उसके करप्ट नेताओं को संरक्षण देने की कीमत पर ले रही है।
शिवसेना ने अपने बयान में शरद पवार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार के दौरान दिए गए बयानों को भी प्रमुखता से उठाया है। पार्टी ने अपने बयान में कहा कि 'कल तक, एनसीपी के लिए बीजेपी एक सांप्रदायिक पार्टी थी और हाफ पैंट पहनने वालों की पार्टी कहकर शरद पवार बीजेपी का मजाक उड़ाते थे। पार्टी ने सवाल उठाया है कि क्या अब शरद पवार ने हाफ पैंट सिलवा ली है? इसी तरह प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान एनसीपी को 'नैचुरली करप्ट पार्टी' कहा था इसकी याद भी शिवसेना ने दिलाई है।
शिवसेना ने सवाल उठाया है कि बीजेपी नेताओं ने एनसीपी के करप्ट नेताओं को जेल भेजने का वादा महाराष्ट्र के मतदाताओं से किया है। अब अगर उसी पार्टी के नेताओं के समर्थन से बीजेपी सरकार बनाएगी तो जेल किसे भेजेगी?
विदर्भ में बीजेपी को मिले जबर्दस्त जनादेश का मतलब यह नहीं है कि विदर्भ के लोगों ने अलग राज्य के लिए जनादेश दिया है। शिवसेना ने कहा,'बीजेपी को विदर्भ क्षेत्र में बडा जनादेश मिला जिससे उसकी सीट संख्या काफी बढ़ गई, लेकिन हम इस बात पर विश्वास नहीं कर सकते कि यह जनादेश अलग विदर्भ राज्य के लिए है। वहां बीजेपी के विधायक हो सकते हैं, लेकिन वहां से सांसद शिवसेना के हैं जो एकीकृत महाराष्ट्र के लिए कटिबद्ध हैं। उनका रुख अटल है और कभी नहीं बदलेगा ।'

Tuesday, October 21, 2014

विकल्पों पर एक नजर

महाराष्ट्र में बीजेपी अपने साथी दलों के साथ 123 सीटें मिली हैं, जो कि बहुमत के लिए जरूरी 145 सीटों से उसे कुछ ही दूर छोड़ गया है। सरकार बनाने के लिए 22 विधायकों का अतिरिक्त समर्थन जुटाना होगा। इस बार सात निर्दलीयों और छोटे दलों के 12 विधायक जुट जाएं, तब भी काम नहीं बन रहा। इसमें एमआईएम, सीपीआई और समाजवादी पार्टी जैसी पार्टियां हैं, जिनको जोड़ना शायद मुमकिन नहीं है। 42 सदस्यों वाली कांग्रेस तो वैसे भी समर्थन देने से रही। आगे बीजेपी के लिए दो ही रास्ते रह जाते हैं- पुराने मित्र शिवसेना और नए सिरे से हाथ बढ़ाने वाली एनसीपी। वरना तीसरा विकल्प एनसीपी और कांग्रेस मिलकर शिवसेना की सरकार को समर्थन देने का बचता है। इन्हीं विकल्पों पर एक नजर
शिवसेना के साथ आने पर....
25 सालों तक गठबंधन में बीजेपी के साथ रही शिवसेना उनकी 'प्राकृतिक दोस्त' कही जा सकती है। वैसे, जिस तरह इस चुनाव में बीजेपी ने उससे एकाएक रिश्ते तोड़ दिए, उसकी नाराजगी से शिवसेना अभी तक उबरी नहीं है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी उसे याद दिलाना नहीं भूले एनसीपी समर्थन देने के लिए तैयार है। ऊपर से यह भी बताना नहीं भूले कि एनसीपी सरकार में शामिल होकर मंत्री पद भी नहीं मांग रही। इससे कुनमुनाए शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने 'उसी के साथ सरकार बना लो' कहकर दामन झटक लिया है। बहरहाल, शिवसेना अपनी शर्तों पर मानेगी। ऐसा माना जा रहा है कि वह पहले बीजेपी से मिन्नते करवाएगी। फिर आगे ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री पद बांटने की मांग भी रख सकती है। आगे चलकर यह शर्त छोड़ भी दी तो बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के चयन में दखल दे सकती है। इस तरह की खींचतान चली को सरकार बनने में समय लग सकता है। केंद्र में मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार होना है, केवल एक मंत्री पद पाने से असंतुष्ट शि‌वसेना दिल्ली में इसमें भी ज्यादा पद और बेहतर विभागों की मांग कर सकती है। बीजेपी का बड़ा फायदा शिवसेना को सरकार से अलग रखने में ही होगा। शिवसेना को दूर रखा गया तो उसकी कट्टर प्रतिस्पर्धि कांग्रेस को विधानसभा में विपक्ष का नेता का पद तक नसीब नहीं होगा। शिवसेना सरकार में शामिल नहीं होती, तो यह पद उसे मिलेगा। बीजेपी के घाघ इसमें दोहरा फायदा देखते हैं, मुख्यमंत्री पद के शिवसेना के सपने को धूसर करने का सुख और इसी फैसले में विधानसभा में कांग्रेस को किनारे करने का अतिरिक्त लाभ।
एनसीपी को साथ लेने पर....
एनसीपी ने शिवसेना को सरकार बनाने के लिए महाराष्ट्र में 'बाहर' से समर्थन देने की घोषणा की है। यह पेशकश ऐसे समय आई है, जबकि बीजेपी को इस विटामिन की बेहद जरूरत है। दो दिन पहले राज्य के बीजेपी नेताओं ने प्रेस सम्मेलन लेकर ताल ठोंककर यह बयान दे डाला कि 'भ्रष्ट' एनसीपी के साथ जाने का सवाल नहीं उठता। हजारों करोड़ के सिंचाई घोटाले में एनसीपी नेताओं को जेल भेजने का दावा करने के बाद सरकार बनाने के लिए उसी की इनायत पर उतर आना, बीजेपी की छवि को नुकसान पहुंच सकता है। राजनीतिक विश्लेषक काफी समय से यह कयास लगा रहे हैं कि महाराष्ट्र में समर्थन के बदले एनसीपी कहीं दूसरी जगह कीमत वसूलने की तो नहीं सोच रही। जैसे केंद्र में मंत्री या राज्यपाल पद की संभावना। लोकसभा में 18 सांसदों वाली शिवसेना को हटाकर केवल दो सांसदों वाली एनसीपी को बैठाना समझदारी नहीं कहा जा सकता। फिलहाल टेंपरेरी तौर पर एनसीपी का समर्थन लेकर सरकार बनाई जाए और बाद में शिवसेना के साथ तोलमोल किया जाए, यह भी एक मत चल रहा है। कहीं इस उठापटक में दोनों दूर हो गए, तो बनी बनाई सरकार का भट्टा बैठने में कितना समय लगेगा? शिवसेना और एनसीपी साथ आ गए तो विधानसभा के अलावा सड़क की राजनीति में भी परेशानी के सबब बन सकते हैं, इस बात का अहसास वरिष्ठ नेताओं को है। इसलिए आरएसएस ने बीजेपी को शिवसेना के समर्थन से सरकार बनाने की सलाह दी है। मंगलवार को बीजेपी विधायक दल का नेता चुनने के बाद से सरकार बनाने की अधिकृत पहल शुरू हो जाएगी। 'राजभवन' को तो बीजेपी का संकेत मिलने भर की देर है।
शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी....

एनसीपी नेताओं ने इस रहस्य पर से परदा उठाया है कि शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने का प्रस्ताव उनके सामने कांग्रेस ने रखा है। सबसे पहली बात तो यह कि विसंगतियों का यह जमावड़ा ज्यादा देर टिकने की उम्मीद नहीं है और सरकार बनने के कुछ ही दिन बाद गिरने की आशंका है। दूसरा पहलू यह भी है कि एनसीपी को बीजेपी से समझौता करने से ज्यादा फायदा बीजेपी से दोस्ती करने में है। राज्य के साथ ही दिल्ली की सरकार में भी मलाई मारने का मौका एनसीपी चूक हो जाएगी, इसकी संभावना कम ही है। और उसके बिना यह कारवां बनने की संभावना ही नहीं बनती।

Monday, October 20, 2014

बाहर से बिना शर्त समर्थन देने की पेशकश

शरद पवार की पार्टी एनसीपी ने चुनाव रुझानों में बीजेपी की बढ़त भांपते ही महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए बाहर से बिना शर्त समर्थन देने की पेशकश कर दी। लेकिन, सच तो यह है कि इस पेशकश के पीछे बहुत बड़ा शर्त है। तो सवाल उठता है कि एनसीपी परदे के पीछे से बीजेपी पर कौन सी शर्त थोपना चाहती है?
इसके जवाब की तलाश में हमें थोड़ा पीछे जाना होगा। कौन नहीं जानता कि सियासत में मदद की कोई बात नहीं होती है। पार्टियां अपना हित साधने के लिए दूसरे को समर्थन दिया करती हैं या उसका विरोध करती हैं। खासकर, एनसीपी जैसे सियासी दलों का आजतक तो यही इतिहास रहा है। पार्टी ने आजतक किसी को भी बिना शर्त समर्थन नहीं दिया है। बल्कि, वह जिस पार्टी के साथ गई है उससे पूरा-पूरा हिसाब चुकता किया है।
दरअसल, एनसीपी महराष्ट्र में बीजेपी को समर्थन देकर अपने दिग्गज नेताओं अजीत पवार, प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल की कारिस्तानियों से सरकार का नजर हटाना चाहती है। लेकिन, पार्टी अपनी इस चाहत का सार्वजनिक तौर पर इजहार नहीं कर सकती है। राजनीतिक विश्लेषक और प्रतिद्वंदी पार्टियों की मानें तो एनसीपी बिना शर्त समर्थन की पेशकश कर दबी जुबान में बीजेपी से भ्रष्टाचार के कई मामलों में फंसे अपने तीन बड़े नेताओं को सुरक्षा देने का आग्रह कर रही है।
एक ओर पूर्व उप-मुख्यमंत्री अजीत पवार और पार्टी के सहयोगी पूर्व सिंचाई मंत्री सुनील तटकरे 70,000 करोड़ रुपये के सिंचाई घोटाले में फसें हैं तो दूसरी ओर पूर्व पीडब्ल्यूडी मंत्री छगन भुजबल नई दिल्ली में महराष्ट्र सदन के जीर्णोद्धार की लागत में इजाफा करने का आरोप झेल रहे हैं। दरअसल, एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) ने राज्य सरकार से इन दोनों पूर्व मंत्रियों के खिलाफ जांच का आदेश मांगा है। ब्यूरो का फाइल मंत्रालय में अब भी धूल फांक रहा है और अंदरूनी हालात से वाकिफ लोगों को लगता है कि बीजेपी को पता था कि चुनाव के बाद उसे एनसीपी के समर्थन की दरकार पड़ सकती है, इसलिए इसे (फाइल को) ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
बीजेपी 122 सीटें जीतकर भी सरकार बनाने के लिए जरूरी आंकड़ों से पिछड़ गई है। उसे 22 विधायकों के समर्थन की और जरूरत है। शिवसेना के साथ रिश्ते में कड़वाहट का फायदा लेने के लिए एनसीपी ने अंतिम परिणाम का इंतजार भी नहीं किया और उसने तुरत बिना शर्त समर्थन की पेशकश कर दी। चुनाव प्रचार के दौरान पीएम द्वारा एनसीपी को नेचुरली करप्ट पार्टी का तमगा दिए जाने से दोनों पार्टियों में कड़वाहट बढ़ गई थी। एनसीपी ने सरकार में शामिल नहीं होने का प्रस्ताव देकर बीजेपी के साथ अपने रिश्ते में शहद डाल दिया है।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से भी मधुर संबंध बनाना चाहती है,क्योंकि पार्टी को डर है कि प्रफुल्ल पटेल के उड्डयन मंत्री रहते एयर इंडिया की दुर्दशा के लिए उनका गर्दन दबोचा जा सकता है। पूर्व महालेखाकार (सीएजी) विनोद राय ने अपनी किताब 'नॉट जस्ट एन अकाउंटेंटः द डायरी ऑफ नेशंस कन्साइंसकीपर' में भी एयर इंडिया के लिए खरीदे जानेवाले नए हवाई जहाजों की संख्या 28 से बढ़ाकर 68 किए जाने के पटेल के फैसले पर सवाल उठाया है। किताब में बड़ी संख्या में नए प्लेन की खरीद को एयर इंडिया पर बढ़े कर्ज के बोझ के लिए जिम्मेदार माना गया है। इतना ही नहीं एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विलय भी पटेल की देखरेख में ही हुआ, जिससे ना केवल दोनों की समस्याएं बढ़ गईं, बल्कि मार्केट शेयर में भी गिरावट आई।
एनसीपी के बीजेपी की तरफ हाथ बढ़ाने पर सबसे पहला हमला पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान ने किया। उन्होंने प्रधानमंत्री द्वारा एनसीपी को नेचुरली करप्ट पार्टी कहे जाने का हवाला देकर सवाल किया, 'मैं बीजेपी से एक सवाल पूछना चाहता हूं। एनसीपी के किस भ्रष्टाचार से नरेंद्र मोदी अपनी आंखें फेरने जा रहे हैं? यह प्रफुल्ल पटेल पर एयर इंडिया से जुड़े मामला है या महाराष्ट्र में एनसीपी के पूर्व मंत्रियों के खिलाफ एसीबी जांच का ?'
चव्हाण ने इससे पहले भी यह आशंका जाहिर की थी कि एनसीपी का बीजेपी के साथ ताल-मेल हो रहा है। हालांकि, एनसीपी के दो बड़े नेताओं भुजबल और पटेल ने बीजेपी को समर्थन देने में एनसीपी का हित छिपे होने से इनकार किया है। भुजबल ने कहा, 'मैं उस मिटिंग में शामलि था, जब पवार साहब ने बीजेपी को समर्थन देने का फैसला किया। मैंने कोई शर्त नहीं रखा था। चव्हाण जब पीएमओ में थे, तब उन्होंने पटेल के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की? फिर वह महाराष्ट्र के सीएम बने, तो हमारे खिलाफ एक्शन क्यों नहीं लिया? हम बस राज्य में एक स्थाई सरकार चाहते हैं।'
वहीं, पटेल का कहना है कि उनके पास डरने की कोई वजह नहीं है क्योंकि नागरिक उड्डयन से जुड़े सारे फैसले प्रधानमंत्री के स्तर पर कैबिनेट ने लिए थे। उन्होंने कहा, 'हम अपने खिलाफ एसीबी जांच को रोकने नहीं जा रहे हैं। जांच को पूरा होने दें। ' बहरहाल, बीजेपी ने एनसीपी के प्रस्ताव पर कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन, इतना तो जरूर है कि एनसीपी की इस चाल ने बीजेपी के प्रति शिवसेना के रुख में नरमी ला दी है।

Thursday, October 16, 2014

प्राइवेट अस्पताल में भर्ती 86 साल की इंदूबेन पारेख भी

बुधवार को महाराष्ट्र मनाए गए जनतंत्र के जश्न में हिस्सा लेते हुए लाखों की संख्या में लोग वोट देने उतरे। इस पूरे जश्न में अपनी हिस्सेदारी निभाने और अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने के लिए साउथ मुंबई के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती 86 साल की इंदूबेन पारेख भी उतरना चाहती थी। लेकिन उनकी शारीरिक कमजोरी और मेडिकल कंडीशन की वजह से डॉक्टरों ने उन्हें बाहर जाकर वोट देने की इजाजत नहीं दी।

साउथ मुंबई की रहने वाली 86 वर्षीय इंदूबेन पारेख कुछ दिन पहले अपने घर में फिसलने के कारण चोटिल हो गई थी और उन्हें साउथ मुंबई के ही भाटिया हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। इंदूबेन पारेख का इलाज कर रहे, न्यूरो फिजीशन, डॉ़ जॉय देसाई ने बताया कि इंदूबेन को सिर में चोट के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया। उन्होंने बुधवार सुबह वोट डालने की इच्छा जतायी।
डॉ़ जॉय ने बताया कि उनकी बात सुनकर हमने उनके ब्लडप्रेशर और बाकी जरूरी टेस्ट किए, ताकि उन्हें जाने में कोई समस्या न हो। लेकिन इतनी उम्र में चोट लगने के कारण उनकी स्थिति ऐसी नहीं थी कि उन्हें पोलिंग बूथ तक ले जाया जाए। उनकी इच्छा को देखते हुए अस्पताल उन्हें पोलिंग बूथ तक ले जाने और लाने की व्यवस्था भी करने को तैयार था। वहीं इंदूबेन का कहना है कि मैंने हमेशा वोट दिया है और मैं चाहती थी कि इस बार भी वोट दूं। लेकिन मेरी हालत ऐसी नहीं थी कि डॉक्टर मुझे बाहर भेज पाते।

Tuesday, October 14, 2014

विधानसभा के चुनाव प्रचार का बिगुल सोमवार की शाम 6 बजे बंद

महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव प्रचार का बिगुल सोमवार की शाम 6 बजे बंद हो गया। अब उम्मीदवारों की असली अग्नि परीक्षा में 48 घंटे से भी कम समय बचा है। प्रचार थमने के बाद ज्यादातर उम्मीदवार अपने ऑफिसों में जाकर पसीने पोंछते नजर आए। देर रात गुपचुप तरीके से अलग-अलग सोसायटियों और स्लम बस्तियों में जाकर मेल-मिलाप का कार्यक्रम शुरू हो गया। उधर, चुनाव आयोग मुस्तैद है। उम्मीदवारों पर उसकी पैनी नजर है। पुलिस भी बंदोबस्त में लगी है।
महाराष्ट्र की 288 सीटों के लिए 4,119 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। इनमें 276 महिलाएं हैं। 1,699 निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। राज्य की कुल विधानसभा सीटों में सबसे ज्यादा सीटों पर 287 सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ रही है। शिवसेना 282, बीजेपी 280, एनसीपी 278, बीएमसी 260, एमएनएस 219, सीपीआई 34 और सीपीएम 19 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
राज्य की 83 सीटों पर 15 से अधिक उम्मीदवार है। नांदेड दक्षिण विधानसभा पर सबसे ज्यादा 39 उम्मीदवार हैं। सबसे कम 5-5 उम्मीदवार अकोला और गुहागर सीट पर हैं। राज्य में सबसे बड़ी सीट चिंचवड विधानसभा क्षेत्र है। वहां 4,84,080 मतदाता हैं। सबसे छोटा विधानसभा चुनाव क्षेत्र मुंबई का वडाला हैं। वहां 1,96,859 मतदाता हैं।
चुनाव आयोग ने मतदान कराने की तैयारी पूरी कर ली है। मतदान पर्ची बांटने का काम अंतिम दौर में है। करीब 90 पर्सेंट लोगों को पर्ची बांट दी गई हैं। करीब 92 पर्सेंट मतदाताओं के पास फोटो वाले पहचान पत्र हैं। राज्य के कुल 91,376 मतदान केंद्रों में से 2,331 मतदान केंद्र संवेदनशील हैं और 626 मतदान क्षेत्र अतिसंवेदनशील हैं। सबसे ज्यादा 450 अतिसंवेदनशील मतदान केंद्र गडचिरोली में है। मुंबई में एक भी अतिसंवेदनशील मतदान केंद्र नहीं है।
सुरक्षित मतदान कराने के लिए राज्य में सीआरपीएफ की 320 कंपनियां (लगभग 3200 जवान) बुलाई गई हैं। राज्य के 1.22 लाख पुलिसकर्मियों को चुनाव ड्यूटी पर लगाया गया है। मतदान के लिए 5,84,617 कर्मचारियों की नियुक्ति की गई है। वोट देने के लिए 1,51,032 इलेट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का उपयोग किया जा रहा है।
बंदोबस्त की वजह से पुलिसवाले कभी अपना वोट नहीं डाल पाते, इसलिए इस बार पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया ने अपने सभी पुलिसकर्मियों को पोस्टल बैलट से वोट डालने को कहा है। सोमवार शाम तक कुल 17,000 पुलिसकर्मियों को पोस्टल बैलट दिए जा चुके थे।
राज्य में चुनाव कराने की तैयारी हो गई है। बस, किंग वोटर के मतदान का इंतजार है। संवेदनशील और अतिसंवेदनशील मतदान केंद्रों पर विशेष सुरक्षा व्यवस्था की गई है। हम मतदाताओं से अपील करते हैं कि ज्यादा से ज्यादा लोग मतदान करें। 

Thursday, October 9, 2014

ध्यान पड़ोसी देश की 'खुराफातों ' को रोकने पर लगाना चाहिए न कि महाराष्ट्र की राजनीति पर।

पाकिस्तान द्वारा सीज फायर का उल्लंघन किए जाने के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रचार अभियान जारी रखते हुए शिवसेना ने बुधवार को कहा कि मोदी को अपना ध्यान पड़ोसी देश की 'खुराफातों ' को रोकने पर लगाना चाहिए न कि महाराष्ट्र की राजनीति पर।
शिवसेना ने कहा कि राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए मोदी के कहे मुताबिक 56 इंच का सीना जरुरी नहीं है, इसके लिए दरअसल मजबूत इच्छाशक्ति होनी चाहिए। मोदी पर यह टिप्पणी शिवसेना ने 'सामना' के जरिए की है। जिसमें लिखा गया है कि मोदी को ऐसे समय में राज्य में चुनावी रैलियों में व्यस्त रखा जा रहा है जबकि उनकी सबसे ज्यादा जरुरत केंद्र में है। यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा का नजरअंदाज करने जैसा है।

शिवसेना ने कहा, 'हम महाराष्ट्र की राजनीति के बारे में बाद में भी बात कर सकते हैं मोदी जी, लेकिन इस समय सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हम हमारे पड़ोसी द्वारा की जा रही खुराफातों को सहन न करें। क्या राष्ट्र के हितों की सुरक्षा के लिए और पाकिस्तान को उसके कुकर्मों का सबक सिखाने के लिए आपको 56 इंच का सीना चाहिए? उन्हें वापस इतना ही कड़ा जवाब देने के लिए आपको मजबूत इच्छा शक्ति चाहिए।'
शिवसेना ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है कि पाकिस्तान लगातार भारत की ओर गोलीबारी करने की हिम्मत जुटा रहा है क्योंकि भारत सरकार की ओर से कोई सख्त कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।

Wednesday, October 8, 2014

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला

महाराष्ट्र में चुनाव नजदीक आते ही पुरानी सहयोगी रहीं शिवसेना और बीजेपी के बीच जुबानी जंग बढ़ती जा रही है। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए फिर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोला है।
सामना के ताजा अंक में पाकिस्तान के भारतीय सीमा पर लगातार हमले करने पर और नरेंद्र मोदी के स्टैंड पर सवाल उठाया गया है।
शिवसेना ने सामना के जरिए पीएम से पूछा है कि पाकिस्तान जब सीमा पर लगातार धोखाधड़ी कर रहा है तो 56 इंच सीने वालों को ऐसे समय में देश की रक्षा करनी चाहिए या पाकिस्तान को सबक सिखाना चाहिए।
बीते कुछ दिनों से पाकिस्तान की ओर से सीमा पर भारतीय सेना के चेकपोस्टों और गांवों पर गोलियां बरसाई जा रही हैं।

Tuesday, October 7, 2014

गडकरी को पुणे में चुनावी सभा के दौरान एक शख्स ने जूता मारने की कोशिश

केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी को पुणे में चुनावी सभा के दौरान एक शख्स ने जूता मारने की कोशिश की। हालांकि जूता मारनेवाला शख्स गडकरी से किस बात से नाराज है, यह पता नहीं चल पाया है।
गडकरी चुनावी सभा को संबोधित करने आ ही रहे थे, तभी भीड़ में शामिल एक शख्स ने पीछे से उनपर जूता चला दिया। हालांकि, गडकरी को जूता लग नहीं पाया। बहरहाल, बीजेपी कार्यकर्ताओं ने आरोपी शख्स को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया।
इससे पहले आज चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के लातूर में चुनावी सभा के दौरान दिए गए उनके बयान पर कारण बताओ नोटिस जारी किया। केंद्रीय मंत्री ने लातूर में आयोजित चुनावी सभा में मौजूद लोगों से कहा था कि उन्हें जहां से जो मिले, वह उसे बटोर लें।
उन्होंने कहा था, 'लक्ष्मी को नहीं बोलना नहीं, लेकिन वोट बीजेपी को देना भूलना नहीं। गरीबों को हराम की कमाई में हिस्सा चुनाव के दौरान ही मिल पाता है, इसलिए उससे इनकार नहीं करना चाहिए।'

Saturday, October 4, 2014

जांच एजेंसियों को ताज्जुब

ऑटोवालों की रोज की कमाई हजार रुपये भी नहीं होती है। ऐसे में किसी ऑटोवाले के अकाउंट्स में कुछ सप्ताह के अंतराल में डेढ़ करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम आ जाए, तो स्वाभाविक है, जांच एजेंसियों को ताज्जुब होगा। साइबर पुलिस ने फैयाज शेख नामक इस ऑटोवाले के साथ उसके सरगना आमिर अंसारी को भी गिरफ्तार किया है। दोनों को गुरुवार को किला कोर्ट में पेश किया गया। ऐडवोकेट अजय दुबे के अनुसार, दोनों आरोपियों को 7 अक्टूबर तक पुलिस कस्टडी में भेजने का कोर्ट ने आदेश दिया।
अंसारी कांदिवली का रहनेवाला है, जबकि फैयाज मालवणी का मूल निवासी है। दोनों की एक कॉमन फ्रेंड के जरिए दोस्ती हुई। अब तक की छानबीन में यह बात सामने आई कि आमिर अंसारी नाइजीरियन गैंग से सीधे जुड़ा हुआ था। नाइजीरियन गैंग डेटा चुराकर क्लोन डेबिट और क्रेडिट कार्ड बनाते थे। नाइजीरियन गैंग को ठगी से हथियाई गई रकम को किसी अकाउंट में ट्रांसफर करना होता था।

नाइजीरियन गैंग ने जब अंसारी से संपर्क किया, तो उन्होंने फैयाज शेख के रामू तिवारी नाम से फर्जी दस्तावेज बनवाए और फिर इन दस्तावेजों पर अलग अलग बैंकों में अकांउट्स खुलवाए। बाद में अंसारी ने इन अकाउंट्स में ट्रांसफर हुई रकम को फैयाज के जरिए निकलवाना शुरू किया। देखते ही देखते फैयाज के अकाउंट्स में 1 करोड़ 65 लाख 23 हजार रुपये की राशि ट्रांसफर हो गई और निकाल ली भी गई।
अंसारी ने फैयाज के जरिए मिली इस रकम में अपना कमिशन लेकर नाइजीरियन गैंग को शेष रकम दे दी। खास बात यह है कि अंसारी को नाइजीरियन गैंग से उसके इस काम के लिए मोटा कमिशन मिलता था, पर अंसारी ने फैयाज को बदले में सिर्फ 25 हजार रुपये ही दिए थे।

Wednesday, October 1, 2014

सुराज के मुद्दे पर समर्थन मांगा

इस बार समय कम है और उम्मीदवार ज्यादा है। ऐसे में नेता ही नहीं उनके परिवार के लोग भी चुनाव प्रचार में भाग ले रहे हैं। इसी कड़ी में एनएनएस चीफ राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे ने भी चुनाव प्रचार में एंट्री ले चुके हैं। अमित ने मंगलवार को पोइसर में पदयात्रा की। कास बात यह है कि पोइसर का इलाका पूरी तरह से उत्तर भारतीय और हिंदी भाषी बहुल इलाका है।
इस इलाके में उनकी पदयात्रा को जानबूझकर प्लान किया गया था, ताकि एमएनएस और उत्तर भारतीयों के बीच की खाई को कम किया जा सके। जूनियर राज ठाकरे ने भी यहां प्रचार के दौरान विवादास्पद मुद्दों के बजाए विकास और सुराज के मुद्दे पर समर्थन मांगा।
उधर मालाड सीट से शिवसेना के उम्मीदवार विनय जैन ने अपने मतदाताओं को इंप्रेस करने के लिए एक अनोखी योजना पेश की है। उन्होंने कहा कि मालवणी इलाके में बेस्ट की बसों के लिए रोज होने वाली जद्दोजहद से अपने वोटरों को बचाने के लिए वे सुबह और शाम को अपने स्कूलों की सारी बसें लगाने को तैयार है। बशर्ते कि बेस्ट उनके महीनों पहले भेजे गए प्रस्ताव को स्वीकार कर ले। कई स्कूलों का संचालन करने वाले जैन की इस घोषणा को मालवणी में अच्छा रिस्पॉन्स मिला है।
बोरिवली में बीजेपी के हैवी वेट नेता विनोद तावड़े के खिलाफ शिवसेना जबर्दस्त लामबंदी में जुटी है। शिवसेना ने यहां से सीए उत्तम प्रकाश अग्रवाल को अपना उम्मीदवार बनाया है। बीजेपी को मात देने के लिए इस सीट पर पार्टी ने शिवसेना के बड़े नेताओं को काम पर लगाया है। मंगलवार को शिवसेना नेता रामदास कदम खुद मेहनत करते नजर आए।
कदम ने नए चुनाव कार्यालय में ही क्षेत्र के सभी शिवसेना नगरसेवकों की बैठक ली और चुनावी रणनीति के तहत सभी को जिम्मादारियां बांटी। बैठक की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दहिसर से चुनाव लड़ रहे विभाग प्रमुख विनोद घोसालकर अपना चुनाव प्रचार छोड़ कर इस बैठक में शामिल हुए।