Tuesday, October 21, 2014

विकल्पों पर एक नजर

महाराष्ट्र में बीजेपी अपने साथी दलों के साथ 123 सीटें मिली हैं, जो कि बहुमत के लिए जरूरी 145 सीटों से उसे कुछ ही दूर छोड़ गया है। सरकार बनाने के लिए 22 विधायकों का अतिरिक्त समर्थन जुटाना होगा। इस बार सात निर्दलीयों और छोटे दलों के 12 विधायक जुट जाएं, तब भी काम नहीं बन रहा। इसमें एमआईएम, सीपीआई और समाजवादी पार्टी जैसी पार्टियां हैं, जिनको जोड़ना शायद मुमकिन नहीं है। 42 सदस्यों वाली कांग्रेस तो वैसे भी समर्थन देने से रही। आगे बीजेपी के लिए दो ही रास्ते रह जाते हैं- पुराने मित्र शिवसेना और नए सिरे से हाथ बढ़ाने वाली एनसीपी। वरना तीसरा विकल्प एनसीपी और कांग्रेस मिलकर शिवसेना की सरकार को समर्थन देने का बचता है। इन्हीं विकल्पों पर एक नजर
शिवसेना के साथ आने पर....
25 सालों तक गठबंधन में बीजेपी के साथ रही शिवसेना उनकी 'प्राकृतिक दोस्त' कही जा सकती है। वैसे, जिस तरह इस चुनाव में बीजेपी ने उससे एकाएक रिश्ते तोड़ दिए, उसकी नाराजगी से शिवसेना अभी तक उबरी नहीं है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी उसे याद दिलाना नहीं भूले एनसीपी समर्थन देने के लिए तैयार है। ऊपर से यह भी बताना नहीं भूले कि एनसीपी सरकार में शामिल होकर मंत्री पद भी नहीं मांग रही। इससे कुनमुनाए शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने 'उसी के साथ सरकार बना लो' कहकर दामन झटक लिया है। बहरहाल, शिवसेना अपनी शर्तों पर मानेगी। ऐसा माना जा रहा है कि वह पहले बीजेपी से मिन्नते करवाएगी। फिर आगे ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री पद बांटने की मांग भी रख सकती है। आगे चलकर यह शर्त छोड़ भी दी तो बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के चयन में दखल दे सकती है। इस तरह की खींचतान चली को सरकार बनने में समय लग सकता है। केंद्र में मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार होना है, केवल एक मंत्री पद पाने से असंतुष्ट शि‌वसेना दिल्ली में इसमें भी ज्यादा पद और बेहतर विभागों की मांग कर सकती है। बीजेपी का बड़ा फायदा शिवसेना को सरकार से अलग रखने में ही होगा। शिवसेना को दूर रखा गया तो उसकी कट्टर प्रतिस्पर्धि कांग्रेस को विधानसभा में विपक्ष का नेता का पद तक नसीब नहीं होगा। शिवसेना सरकार में शामिल नहीं होती, तो यह पद उसे मिलेगा। बीजेपी के घाघ इसमें दोहरा फायदा देखते हैं, मुख्यमंत्री पद के शिवसेना के सपने को धूसर करने का सुख और इसी फैसले में विधानसभा में कांग्रेस को किनारे करने का अतिरिक्त लाभ।
एनसीपी को साथ लेने पर....
एनसीपी ने शिवसेना को सरकार बनाने के लिए महाराष्ट्र में 'बाहर' से समर्थन देने की घोषणा की है। यह पेशकश ऐसे समय आई है, जबकि बीजेपी को इस विटामिन की बेहद जरूरत है। दो दिन पहले राज्य के बीजेपी नेताओं ने प्रेस सम्मेलन लेकर ताल ठोंककर यह बयान दे डाला कि 'भ्रष्ट' एनसीपी के साथ जाने का सवाल नहीं उठता। हजारों करोड़ के सिंचाई घोटाले में एनसीपी नेताओं को जेल भेजने का दावा करने के बाद सरकार बनाने के लिए उसी की इनायत पर उतर आना, बीजेपी की छवि को नुकसान पहुंच सकता है। राजनीतिक विश्लेषक काफी समय से यह कयास लगा रहे हैं कि महाराष्ट्र में समर्थन के बदले एनसीपी कहीं दूसरी जगह कीमत वसूलने की तो नहीं सोच रही। जैसे केंद्र में मंत्री या राज्यपाल पद की संभावना। लोकसभा में 18 सांसदों वाली शिवसेना को हटाकर केवल दो सांसदों वाली एनसीपी को बैठाना समझदारी नहीं कहा जा सकता। फिलहाल टेंपरेरी तौर पर एनसीपी का समर्थन लेकर सरकार बनाई जाए और बाद में शिवसेना के साथ तोलमोल किया जाए, यह भी एक मत चल रहा है। कहीं इस उठापटक में दोनों दूर हो गए, तो बनी बनाई सरकार का भट्टा बैठने में कितना समय लगेगा? शिवसेना और एनसीपी साथ आ गए तो विधानसभा के अलावा सड़क की राजनीति में भी परेशानी के सबब बन सकते हैं, इस बात का अहसास वरिष्ठ नेताओं को है। इसलिए आरएसएस ने बीजेपी को शिवसेना के समर्थन से सरकार बनाने की सलाह दी है। मंगलवार को बीजेपी विधायक दल का नेता चुनने के बाद से सरकार बनाने की अधिकृत पहल शुरू हो जाएगी। 'राजभवन' को तो बीजेपी का संकेत मिलने भर की देर है।
शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी....

एनसीपी नेताओं ने इस रहस्य पर से परदा उठाया है कि शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने का प्रस्ताव उनके सामने कांग्रेस ने रखा है। सबसे पहली बात तो यह कि विसंगतियों का यह जमावड़ा ज्यादा देर टिकने की उम्मीद नहीं है और सरकार बनने के कुछ ही दिन बाद गिरने की आशंका है। दूसरा पहलू यह भी है कि एनसीपी को बीजेपी से समझौता करने से ज्यादा फायदा बीजेपी से दोस्ती करने में है। राज्य के साथ ही दिल्ली की सरकार में भी मलाई मारने का मौका एनसीपी चूक हो जाएगी, इसकी संभावना कम ही है। और उसके बिना यह कारवां बनने की संभावना ही नहीं बनती।

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