Wednesday, November 26, 2014

मैं सच जानता हूं। कसाब पर काम्टे ने नहीं , मैंने गोलियां चलाईं- अरुण जाधव

छह साल पहले 26/11 की रात गिरगांव में हुए एनकाउंटर में अबू इस्माइल मारा गया था और अजमल कसाब घायल हो गया था। पर गिरगांव से पहले कामा अस्पताल से लगी रंग भवन लेन में भी कसाब को कई गोलियां लगी थीं। अब तक ये कहानियां चल रही थीं कि वे गोलियां तब के अडिशनल सीपी अशोक काम्टे की एके-47 से निकली थीं , पर 26/11 के हीरो अरुण जाधव ने मंगलवार को एनबीटी से दावा किया कि कसाब को गोलियां काम्टे ने नहीं , खुद उन्होंने मारी थीं। अरुण जाधव का दावा है कि यह बात उन्होंने 26/11 की जांच के लिए बनी राम प्रधान कमिटी के सामने भी कही थी।
26/11
को दस आतंकवादी बधवार पार्क के रास्ते मुंबई में घुसे थे और फिर दो - दो के ग्रुप में पांच अलग - अलग जगह घुस गए थे। अजमल कसाब और अबू इस्माइल वाला ग्रुप टैक्सी से मुंबई सीएसटी पहुंचा था। सीएसटी में दर्जनों लोगों पर अंधाधुंध गोलीबारी के बाद दोनों आतंकवादी रेलवे के पिछले पुल से बाहर आते हुए कामा अस्पताल के अंदर पीछे वाले गेट से घुस गए थे। तब के अडिशनल सीपी सदानंद दाते के नेतृत्व में फौरन एक टीम सीढियों के सहारे कामा अस्पताल के ऊपर तक पहुंच रही थी कि तभी गोलीबारी व हैंडग्रेनेड से किए हमले में पीएसआई प्रकाश मोरे और कांस्टेबल विजय खांडेकर की मौत हो गई, जबकि खुद दाते व उनका एक सिपाही तिलेकर उसमें घायल हो गया था। तिलेकर किसी तरह कामा अस्पताल के पीछे वाले गेट से बाहर आने में सफल रहा और फिर बकौल अरुण जाधव विजय सालसकर को यह बात बताई, जो अपनी क्राइम ब्रांच की टीम के साथ बाहर खड़े थे। अशोक काम्टे और तब के एटीएस चीफ हेमंत करकरे अलग - अलग रास्तों से अपनी - अपनी टीम के साथ कामा अस्पताल के पीछे वाले गेट तक पहुंचे थे। उस वक्त तक पायधुनी पुलिस के एसीपी भी क्वॉलिस पुलिस गाड़ी से वहां पहुंच चुके थे।
घायल तिलेकर को अस्पताल पहुंचाने का निर्देश देने के बाद सालसकर, काम्टे व करकरे के बीच जो मंत्रणा हुई, उसमें यह फैसला किया गया कि कामा अस्पताल में सीढ़ियों पर फंसे सदानंद दाते को बचाने के लिए आगे वाले गेट यानी मुख्य सड़क वाले द्वार से कामा अस्पताल के अंदर घुसा जाए। उसी के तहत पायधुनी के एसीपी की क्वॉलिस गाड़ी में सबसे आगे काम्टे बैठे, फिर ड्राइविंग सीट पर सालसकर, जबकि बीच की रो में हेमंत करकरे। सबसे पीछे वाली जगह पर कुल चार लोग बैठे। इनमें अरुण जाधव, पायधुनी के एसीपी का ड्राइवर भोसले, एसीपी का ऑपरेटर योगेश पाटील व अशोक काम्टे का ऑपरेटर जयवंत पाटील शामिल था।
क्वॉलिस गाड़ी में बैठने से पहले की जो प्लानिंग थी, उसके मुताबिक इस टीम को कामा अस्पताल से लगी रंग भवन वाली लेन से मेन रोड पर आना था और फिर मुख्य गेट से कामा अस्पताल में घुसकर कसाब व इस्माइल को पकड़ना था, पर जैसे ही इस पुलिस टीम की यह गाड़ी कामा अस्पताल के पीछे वाले गेट से थोड़ी मूव ही हुई, कि उसी वक्त वायरलेस से मैसेज आया कि दो आतंकवादी रंगभवन वाली लेन में एक लालबत्ती वाली गाड़ी के पीछे छिपे हुए हैं। यह लालबत्ती की गाड़ी तब के मेडिकल एजुकेशन सेक्रेटरी भूषण गंगवानी की थी , जिसमें ड्राइवर मारूति फड बैठा हुआ था, जिसकी बाद में एक अंगुली ही चली गई थी। अरुण जाधव का कहना है कि इस लालबत्ती की गाड़ी से काफी पहले की दूरी पर कसाब व इस्माइल कुछ गमलों के पीछे छिपे बैठे थे, जिसका हम लोगों को अंदाज नहीं था, जबकि इन दोनों आतंकवादियों ने हमें दूर से देख लिया था, इसलिए हम कुछ रियेक्ट करते, उससे पहले ही उन्होंने हम पर अंधाधुंध गोलियां चला दीं। जवाब में इस क्वॉलिस जीप से भी गोलियां चलीं, जिसमें कसाब घायल हो गया। पिछले छह सालों से मीडिया में इस तरह की खबरें चलीं कि क्वॉलिस गाड़ी से चली गोलियां दरअसल अशोक काम्टे की एके-47 से निकली थीं, पर अरुण जाधव का कहना है कि मैं उस वारदात का अकेला विटनेस हूं , मैं सच जानता हूं। कसाब पर काम्टे ने नहीं , मैंने गोलियां चलाईं। मैंने अपनी कार्बाइन से तीन गोलियां चलाईं, जिसमें दो कसाब को लगीं भी। मुझे भी पांच गोलियां मारी गईं। जाधव ने कहा कि सबूत के तौर पर उस दिन के रंग भवन के कारतूसों को देखा जा सकता है कि ये कारतूस काम्टे की एके-47 के हैं या मेरी कार्बाइन के।
पायधुनी के एसीपी की इस क्वॉलिस जीप में कुल सात पुलिसकर्मी थे। वारदात के वक्त चार लोगों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। उस वक्त जो खबरें आईं, उसके मुताबिक विजय सालसकर करीब आधा घंटे तक जिंदा रहे और सड़क पर पड़े रहे, पर चूंकि उन्हें समय पर अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका , इसलिए समय पर इलाज न मिलने के कारण बाद में उनकी मौत हो गई। हालांकि अरुण जाधव को इस बारे में कुछ पता नहीं है, इसलिए इस बारे में उन्होंने एनबीटी से कुछ बोला भी नहीं। पर अरुण जाधव ने इतना जरूर कहा कि जब गोलीबारी हुई , तो पीछे की सीट पर बैठे हम चार लोग एक दूसरे पर गिर पड़े। उसी वक्त कसाब व इस्माइल जब रंग भवन लेन से पुलिस की क्वॉलिस गाड़ी को ड्राइव कर बाहर निकल रहे थे, उसी वक्त ऑपरेटर योगेश पाटील के मोबाइल की घंटी बज गई, इस पर एक आतंकवादी ने फौरन योगेश को गोली मार दी । दोनों आतंकवादी पुलिस की गाड़ी को फिर विधानभवन के बाहर छोड़ कर वहां एक बिजनेसमैन की स्कोडा गाड़ी में जबरन घुस कर उसकी गाड़ी को ले भागे थे। उसी के बाद अरुण जाधव ने क्वॉलिस गाड़ी में लगे वायरलेस से पुलिस कंट्रोल रूम को दोनों आतंकवादियों के स्कोडा से भागने की सूचना दे दी। इसके बाद पूरे शहर में नाकाबंदी कर दी गई। इसी में गिरगांव में हुए एनकाउंटर के बाद अबू इस्माइल मारा गया, जबकि कसाब जिंदा पकड़ा गया।

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