Tuesday, November 11, 2014

शिव सेना में अंदरूनी टूटफूट ही एकमात्र सुरक्षित उपाय

शिव सेना ने महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता पद पर दावा पेश करके अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं। इसे बीजेपी से किनारा करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। शिव सेना से हाथ धो लेने के बाद देवेंद्र फडणवीस सरकार कैसे बचेगी, इस बारे में चर्चा जारी है। कांग्रेस, एनसीपी या शिव सेना में अंदरूनी टूटफूट ही एकमात्र सुरक्षित उपाय लगता है। वरना राज्य की बीजेपी सरकार अब पूरी तरह शरद पवार के रहमो-करम पर टिकी दिख रही है।
एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने 'फिलहाल' बीजेपी की सरकार को 'स्थिरता' देने का आश्वासन दिया है। हालांकि, उन्होंने साफ नहीं किया है कि यह समर्थन सीधा होगा, या फिर पिछले दरवाजे से? एनसीपी विश्वासमत को सीधा समर्थन करती है, तो बीजेपी को किसी बाहरी समर्थन की जरूरत नहीं पड़ेगी। अगर एनसीपी मतदान में हिस्सा न लेने का 'पिछला रास्ता' चुनती है, तब भी 3-4 और विधायकों की जरूरत पड़ेगी। निर्दलीय और छोटे दलों के 9 विधायकों का पक्का समर्थन काम आसान बना देगा। पवार ने यह सस्पेंस कायम रखा है कि वे इसमें कौन सा रास्ता चुनेंगे। उन्होंने प्रेस को बताया कि विश्वासमत वाले दिन एनसीपी विधायकों की बैठक में इसका फैसला होगा। हालांकि दोनों ही स्थितियों में बुधवार का टेस्ट उतना मुश्किल नहीं जान पड़ता।
बीजेपी सरकार को एनसीपी की कुछ दिनों की लीज मिली है। पवार के शब्दों में- 'अभी चुनाव नहीं कराना चाहते हैं, इसलिए'। एनसीपी विपक्ष की भूमिका निभाएगी। हर विधेयक पर उसके सदस्य समय के अनुसार फैसला लेंगे। 3 या 5 साल सरकार चलाने का कोई जिम्मा उसके पास नहीं है। एनसीपी का 'बाहरी' समर्थन उनकी स्थिति को मजबूत बनाता है। एनसीपी जब चाहेगी, फडणवीस सरकार के सामने विभिन्न मुद्दों पर मांगें रखेंगी। 'मांग' तो यह नाम भर की होगी, इसे हिदायत या निर्देश कहना शायद ज्यादा मुनासिब होगा। शिव सेना को तो कुछ डिपार्टमेंट देने भर की बात थी। एनसीपी का हस्तक्षेप बढ़ा तो हर डिपार्टमेंट उसकी जद में होगा।
महाराष्ट्र विधानसभा में अध्यक्ष पद का चुनाव होना है। यह गनीमत है कि एनसीपी इसमें अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं कर रही। वरना कांग्रेस और नाराज शिव सेना के समर्थन पर वह आसानी से चुन लिया जाता। अगर ऐसा होता है तो अल्पमत फडणवीस सरकार के लिए यह अच्छा संकेत नहीं होगा। एनसीपी ने इस मुद्दे पर भी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। पवार ने कहा कि हम अध्यक्ष पद का उम्मीदवार देखकर फैसला करेंगे।
हालात न बदले तो सत्ता की लगाम एनसीपी के हाथ में होगी। ऊपर से सरकार चलाने की कोई जिम्मेदारी भी नहीं। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि यह व्यवस्था कुछ दिन चलने के बाद एनसीपी को सरकार में शामिल करना बीजेपी को बेहतर मालूम देने लगे। पवार ने नई सरकार से अपेक्षाओं की पहली लिस्ट प्रेस के सामने बांच दी है। किसानों के पक्ष में फडणवीस सरकार को ये-ये सब करना चाहिए। यह कोई अंतिम लिस्ट नहीं है और न ही अपेक्षा रखने वाले नेताओं की एनसीपी में कोई कमी है। ऐसे में हर कानून बनाने, हर नीति पर विधानमंडल की मुहर लगाने के लिए समर्थन की गुहार लगेगी। बीजेपी ने जो राह चुनी है, आसान नहीं कही जा सकती।
महाराष्ट्र विधानपरिषद के 78 सदस्यों में एनसीपी के सर्वाधिक 28 सदस्य हैं। इस बूते पर उसे परिषद में विपक्ष के नेता पद मिलेगा। कांग्रेस के इस सदन में केवल 21 सदस्य हैं। बीजेपी के 11 और शिव सेना के 6 सदस्य हैं। विधानसभा के अलावा विधानपरिषद में हर विधेयक पारित करने के लिए सरकार को एनसीपी की सहायता लेनी पड़ सकती है। इस तरह बीजेपी सरकार की निर्भरता दोगुनी हो जाती है। जाहिर है एनसीपी का वर्चस्व भी इसी अनुपात में बढ़ता जाएगा।

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