Friday, May 15, 2015

सत्ता की रेवड़ी

महाराष्ट्र में शिवसेना-बीजेपी के सत्ता में आने के छह महीने बाद साथी दलों को 'सत्ता की रेवड़ी' नसीब हुई है। साथी दलों ने पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात करके 'महायुति' गठबंधन छोड़ने की धमकी दी थी। गुरुवार को इस चेतावनी का असर होता दिखाई दिया। मुख्यमंत्री तड़के चीन की यात्रा पर निकल गए। इससे पहले बुधबार को उन्होंने साथी दल की पहली नियुक्ति के आदेश जारी करवाए। उनके रवाना होने के बाद सरकारी आदेश औपचारिक तौर पर जारी किया गया।
सबसे ज्यादा नाराज चल रहे साथी दल 'स्वाभिमानी शेतकरी संगटना' को महाराष्ट्र स्टेट पॉवरलूम बोर्ड (यंत्रमाग महामंडल) का अध्यक्ष पद दिया गया है। पार्टी अध्यक्ष राजू शेट्टी ने खेद व्यक्त किया था कि सत्ता में कोई हिस्सेदारी देना जरूरी नहीं समझा गया। उनकी पार्टी के युवाध्यक्ष रवि तपकीर को इस बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। तपकीर को पिछले साल तत्कालीन कांग्रेस-एनसीपी सरकार के खिलाफ आक्रामक आंदोलन चलाने के लिए 'तड़ीपार' कर दिया गया था। बाद में एक सरकारी अफसर ने यह आदेश रद किया था।

इस घटना के बाद बाकी बचे नाराज साथी दलों के कार्यकर्ताओं में भी उम्मीद की किरण बंधी है। जहां तक नेताओं का हाल है, वे मंत्रिमंडल में स्थान पाने की आशा लगाए बैठे हैं। वे पहले दिए गए आश्वासन गिना रहे हैं। अठावले ने तो चुनाव से पहले उपमुख्यमंत्री पद और सरकार में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी दिए जाने का दावा किया था। हालांकि उनका एक भी विधायक चुनकर नहीं आया। यही हाल स्वाभिमानी संगटना का भी हुआ। बीजेपी और शिवसेना के बीच हुए समझौते के अनुसार, 60 प्रतिशत पद बीजेपी और 30 प्रतिशत शिवसेना को देने पर सहमति होने की खबर है।
इसे सही माना जाए तो तीनों साथी दलों को 10 प्रतिशत हिस्सेदारी मिलनी है। तीसरे साथी विनायक मेटे की पार्टी से ताल्लुक रखने वाली भारतीताई लव्हेकर मुंबई की वरसोवा सीट से निर्वाचित हुई हैं। लेकिन उन्होंने नामांकन 'कमल' चुनाव चिह्न पर बीजेपी के अधिकृत उम्मीदवार को तौर पर लड़ा था। मेटे एक लंबे अर्से से विधान परिषद सदस्य रहे हैं। अभी यह देखना बाकी है कि साथी दल 'सत्ता की रेवड़ियों' से कितना संतुष्ट हो पाता है? क्या विधायक पद और मंत्री दर्जा पाए बिना ये दल वास्तव में संतुष्ट होंगे?

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