1994 में
लाया गया प्री-कॉनसेप्शन ऐंड प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्नीक (PCPNDT) ऐक्ट यूं तो देश में घटते
लिंगानुपात को बढ़ाने और कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए लाया गया था, लेकिन पिछले कुछ सालों में इस ऐक्ट
के तहत सजा भुगत रहे या कोर्ट के चक्कर लगा रहे डॉक्टरों के मामले देखें तो आधे से
ज्यादा मामले सिर्फ फॉर्म-एफ भरने में हुई गलतियों के हैं।
आंकड़ों के मुताबिक, महाराष्ट्र में PCPNDT ऐक्ट के तहत 500 से ज्यादा ऐसे मामले चल रहे हैं, जिनमें डॉक्टरों पर सिर्फ कागजी कार्रवाई में हुई गलती के चलते कोर्ट केस चलाए गए हैं या फिर उनके सेंटर सील कर दिए गए हैं। ऐक्ट की इन्हीं लचरताओं और कागजी खामियों के चलते डॉक्टरों के कानूनी पचड़े में फंसने की समस्या को लेकर बुधवार को देशभर के 15,000 से ज्यादा डॉक्टर (सोनोलॉजिस्ट, गाइनकॉलजिस्ट और रेडियोलॉजिस्ट) एक दिन की हड़ताल पर चले गए।
PCPNDT ऐक्ट के तहत डॉक्टरों को चार पन्नों का फॉर्म-एफ भरना होता है। इन 500 मामलों में से कई मामलों में डॉक्टरों पर किसी कॉलम में गर्भवती महिला का नंबर न लिखने, किसी कॉलम के गलती से खाली रह जाने, डॉक्टर के एप्रिन न पहनने या अपने नाम का बैज न लगाने जैसे मामूली कारणों के चलते कोर्ट केस चला दिए गए हैं।
नवी मुंबई में प्रैक्टिस करने वाले एक सोनोलॉजिस्ट की केवल चार दिन पहले शुरू की गई सोनोग्राफी की मशीन को सिर्फ इसलिए सील कर दिया गया क्योंकि उसने सोनोग्राफी के लिए आई एक महिला का फॉर्म भरते समय उसका मोबाइल नंबर नहीं लिखा था। दरअसल उस महिला के पास मोबाइल ही नहीं था। सोनोग्राफी मशीन के लिए 30 लाख का लोन लेने वाले इस डॉक्टर पर इस वजह से पिछले 2 सालों से कोर्ट केस चल रहा है और मशीन भी सील पड़ी है।
जेजे अस्पताल के रेडियोलॉजी विभाग के प्रफेसर और इंडियन सोनोलॉजिस्ट ऐंड गाइनकॉलजिस्ट असोसिएशन के प्रवक्ता डॉ. शरद मलवडकर बताते हैं कि इस ऐक्ट में मौजूद खामियों के चलते छोटी-छोटी गलतियों के कारण भी डॉक्टरों का पूरा करियर चौपट हो रहा है। डॉ़ शरद बताते हैं यदि कोई डॉक्टर लिंग निर्धारण की प्रक्रिया में पकड़ा जाए तो उसे सजा जरूर मिलनी चाहिए, बल्कि वर्तमान में जो सजा है उसे बढ़ाना चाहिए। लेकिन यदि एक डॉक्टर फॉर्म-एफ में एक कॉलम भरना भूल गया, तो उसे भी वही सजा देना कैसे जायज है!
गाइनकॉलजिस्ट डॉ़ सोना पुनगांवकर बताती हैं कि PCPNDT ऐक्ट के तहत हर राज्य में अलग-अलग तरह के कानून का पालन हो रहा है। न तो एक नियम है और बेहद छोटी-छोटी खामियों के चलते डॉक्टरों का पूरा करियर बर्बाद हो रहा है।
आंकड़ों के मुताबिक, महाराष्ट्र में PCPNDT ऐक्ट के तहत 500 से ज्यादा ऐसे मामले चल रहे हैं, जिनमें डॉक्टरों पर सिर्फ कागजी कार्रवाई में हुई गलती के चलते कोर्ट केस चलाए गए हैं या फिर उनके सेंटर सील कर दिए गए हैं। ऐक्ट की इन्हीं लचरताओं और कागजी खामियों के चलते डॉक्टरों के कानूनी पचड़े में फंसने की समस्या को लेकर बुधवार को देशभर के 15,000 से ज्यादा डॉक्टर (सोनोलॉजिस्ट, गाइनकॉलजिस्ट और रेडियोलॉजिस्ट) एक दिन की हड़ताल पर चले गए।
PCPNDT ऐक्ट के तहत डॉक्टरों को चार पन्नों का फॉर्म-एफ भरना होता है। इन 500 मामलों में से कई मामलों में डॉक्टरों पर किसी कॉलम में गर्भवती महिला का नंबर न लिखने, किसी कॉलम के गलती से खाली रह जाने, डॉक्टर के एप्रिन न पहनने या अपने नाम का बैज न लगाने जैसे मामूली कारणों के चलते कोर्ट केस चला दिए गए हैं।
नवी मुंबई में प्रैक्टिस करने वाले एक सोनोलॉजिस्ट की केवल चार दिन पहले शुरू की गई सोनोग्राफी की मशीन को सिर्फ इसलिए सील कर दिया गया क्योंकि उसने सोनोग्राफी के लिए आई एक महिला का फॉर्म भरते समय उसका मोबाइल नंबर नहीं लिखा था। दरअसल उस महिला के पास मोबाइल ही नहीं था। सोनोग्राफी मशीन के लिए 30 लाख का लोन लेने वाले इस डॉक्टर पर इस वजह से पिछले 2 सालों से कोर्ट केस चल रहा है और मशीन भी सील पड़ी है।
जेजे अस्पताल के रेडियोलॉजी विभाग के प्रफेसर और इंडियन सोनोलॉजिस्ट ऐंड गाइनकॉलजिस्ट असोसिएशन के प्रवक्ता डॉ. शरद मलवडकर बताते हैं कि इस ऐक्ट में मौजूद खामियों के चलते छोटी-छोटी गलतियों के कारण भी डॉक्टरों का पूरा करियर चौपट हो रहा है। डॉ़ शरद बताते हैं यदि कोई डॉक्टर लिंग निर्धारण की प्रक्रिया में पकड़ा जाए तो उसे सजा जरूर मिलनी चाहिए, बल्कि वर्तमान में जो सजा है उसे बढ़ाना चाहिए। लेकिन यदि एक डॉक्टर फॉर्म-एफ में एक कॉलम भरना भूल गया, तो उसे भी वही सजा देना कैसे जायज है!
गाइनकॉलजिस्ट डॉ़ सोना पुनगांवकर बताती हैं कि PCPNDT ऐक्ट के तहत हर राज्य में अलग-अलग तरह के कानून का पालन हो रहा है। न तो एक नियम है और बेहद छोटी-छोटी खामियों के चलते डॉक्टरों का पूरा करियर बर्बाद हो रहा है।
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