मुसलमानों का मताधिकार छीनने की मांग पर राजनीतिक दलों की तीखी
प्रतिक्रिया झेलने वाली शिवसेना ने बुधवार को नया मुद्दा उठाते हुए प्रतिप्रश्न
किया है कि मुस्लिम मताधिकार के बारे में जिस तरह की प्रतिक्रियाएं हो रही हैं, उसी तरह कश्मीरी पंडितों के
मताधिकार का मुद्दा क्यों नहीं उठाया जा रहा है।
शिवसेना ने अपने मुखपत्र में लिखा
है, 'मुसलमानों के मताधिकार पर देशभर
में हल्ला हो रहा है, लेकिन
क्या इन लोगों ने कभी कश्मीरी पंडितों के मताधिकार के बारे में बात की है? जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के
दौरान कितने हिंदू अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर पाए? क्या किसी ओवैसी या उनके किसी
धर्मनिरपेक्ष समर्थक ने कश्मीरी पंडितों के हक में आवाज उठाई?' यह उल्लेख करते हुए कि कश्मीर घाटी
से एक भी हिंदू विधायक नहीं बना, शिवसेना
ने आरोप लगाया,
'वहां कोई हिंदू नहीं
बचा जो वोट डाल पाता। वहां केवल वे लोग जीत सके जो पाकिस्तान (अलगाववादियों) का
समर्थन करते हैं। हिंदुओं का मताधिकार छिन गया, लेकिन कोई इस बारे में नहीं बोलता।'
मुसलमानों का मताधिकार छीनने की
शिवेसना की मांग पर एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने संजय राऊत के खिलाफ
कार्रवाई की मांग की थी । शिवसेना ने कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास की स्पष्ट योजना
की कमी पर जम्मू कश्मीर की पीडीपी-बीजेपी सरकार पर भी सवाल उठाया । पार्टी ने कहा, 'मुफ्ती मोहम्मद सईद सरकार बीजेपी
के समर्थन से सत्ता में आई है, इसलिए
उन्हें कश्मीरी पंडितों की 'घर
वापसी' के बारे में फैसला लेना होगा।
मुफ्ती सरकार जेल से रिहा हुए आतंकवादियों के लिए इंतजाम करने में व्यस्त है, कश्मीरी पंडितों की किस्मत पर अब
भी सवालिया निशान हैं।' मुस्लिमों
से मताधिकार वापस लेने की मांग कर आलोचनाओं का शिकार बने शिवसेना सांसद संजय राऊत
अपने बयान से पलटते हुए कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय का वोट डालने का अधिकार छीनना
असंवैधानिक है और उन्होंने कभी भी मुसलमानों का मताधिकार छीनने की बात नहीं की।
मैंने सिर्फ इतना कहा कि अगर उन्हें वोट देने की अनुमति नहीं दी जाए तो मुस्लिमों
का प्रयोग राजनीतिक अवसरवादिता के लिए नहीं किया जाएगा, लेकिन मीडिया ने मेरी टिप्पणियों
का गलत मतलब निकाला।
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