Tuesday, January 27, 2015

सबसे बड़ी चुनौती है स्लम फ्री होने की

66 वें गणतंत्र दिवस के मौके पर मुंबई के सामने सबसे बड़ी चुनौती है स्लम फ्री होने की। वैसे भी, केंद्र सरकार द्वारा 2022 तक सबको घर देने की महत्वाकांक्षी योजना को पूरा करने में मुंबई के स्लम रीडिवेलमपेंट पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। हालांकि, अपनी धीमी रफ्तार के कारण अक्सर चर्चा में रहने वाली एसआरए योजना अब फास्ट ट्रैक पर आती दिख रही है। हालांकि, मुफ्त में घर देने वाली इस एसआरए योजना में तमाम तरह की दिक्कतें भी सामने आती हैं। सोने सरीखे स्लम के रीडिवेलपमेंट पर नजर डालती रिपोर्टः
मुंबई में स्लम में रहने वाले लोग यह भली भांति जानते हैं कि यह स्लम नहीं सोना है। इसी के चलते, इसकी कीमतें वसई-विरार के फ्लैट के बराबर होती है। स्लम रीडिवेलपमेंट के तहत हालांकि, लोगों को 269 स्के. फीट का एरिया दिया जाता है लेकिन इससे फ्री मिलने वाली जमीन बिल्डरों के लिए काफी मायने रखती है। हो भी क्यों न, मुंबई में खुली जगह न होने के चलते स्लम बिल्डरों के लिए 'सोने की खान' हैं। ऐसे में बिल्डर इनका रीडिवेलपमेंट हथियाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। इसी के चलते कई तरह के आकर्षक 'गिफ्ट' भी सोसायटी के सदस्यों को मिलने का आरोप लगता रहता है।
2000 तक के स्लम को मान्यता मिलने के बावजूद इनके बाद आए स्लम वालों के द्वारा अक्सर इन योजनाओं को रोकने का प्रयास किया जाता है। इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा राजीव आवास योजना बनाई गई है (जिसमें कट ऑफ की कोई सीमा नहीं है) लेकिन उसे मुंबई में शायद ही कुछ काम हुआ है।
बिल्डर इन स्लम वालों को 'अछूत' सरीखा ट्रीट करते हैं। इन्हें जैसे-तैसे शिफ्ट किया जाता है। इनकी घटिया क्वॉलिटी से अक्सर काफी दिक्कत पैदा होती है। इस पर काफी कुछ किए जाने की जरूरत है। जानकारों को चिंता है कि आने वाले समय में यह बिल्डिंगें वापस वर्टिकल स्लम न बन जाए।
स्लम के रीडिवेलमपेंट की बिल्डिंगों में फ्लोर पर कंट्रोल लगे। लगातार बढ़ रही ऊंचाई से बाद में इन बिल्डिंगों में बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिल पाती है। ऐसे में, केवल इनकी शिफ्टिंग करके ही मामला हल नहीं होता है। इससे लोगों को बिल्डिंग से उतरने-चढ़ने में भी दिक्कत आने लगती है।
कई बार स्लम एक बिल्डर लेकर उसे दूसरे को बेच देता है। कई छोटे बिल्डर इस काम में लगकर इसमें मोटा मुनाफा कमाते हैं। एसआरए में काम करने वाले तमाम बिल्डरों की वेबसाइट तक भी नहीं है। ऐसे में, इनसे काम कराने से आगे चलकर कई योजनाएं अधर में लटक जाती हैं।
कोई ऑनलाइन सिस्टम न होने के चलते एक ही आदमी दूसरे इलाके में नया घर ले लेता है। इससे स्लम का मार्केट काफी प्रभावित होता है। इससे ही घरों के दाम भी अक्सर बढ़ते है। जानकारों के मुताबिक, इसमें भी बड़े पैमाने पर इन्वेस्टर्स आ पहुंचे हैं।
आपसी विवाद के चलते अक्सर परियोजनाएं विवादों में आ जाती हैं। ऐसे में, मामला कोर्ट तक भी पहुंचता है। जिससे काफी समय व्यर्थ हो जाता है।

स्लम पर कंट्रोल किए बिना इन परियोजनाओं का लक्ष्य पूरा होना मुश्किल है। ऐसे में, इस पर बेहद अनुशासन से काम करने की जरूरत जानकार मानते हैं। स्लम रीहेबलिएशन अथॉरिटी के पास स्लम के पुनर्वास का जिम्मा है। इसके तहत, अब तक 1.60 हजार परिवारों को घरों की चाबी सौंपी जा चुकी है। वहीं, 1.9 लाख घरों का काम चल रहा है। ऐसे में, स्लम रीडिवेलपमेंट का काम तेजी से आगे बढ़ रहा है। हालांकि, इसमें पिछले कुछ सालों में ही गति आई है। लगभग 1200 परियोजनाएं चल रही हैं।

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