छोटा राजन की इंडोनिशिया में गिरफ्तारी के बाद बेहतर राजनयिक संबंधों के
सहारे उसे वहां से देश निकाला दिलवाकर (डिपोर्ट) भारत लाना प्रत्यर्पण की तुलना
में फायदे का सौदा हो सकता है। विदेश में रह रहे किसी भारतीय आरोपी को स्वदेश लाने
के दो तरीके हो सकते हैं।
पहला कानूनी तौर पर उसे प्रत्यर्पित करवाकर (एक्स्ट्राडिशन) लाया जाए।
दूसरा वह देश उसे गिरफ्तार कर उसे निर्वासित (डिपोर्ट) कर दे और भारतीय एजेंसी उसे
यहां के हवाई अड्डे पर उतरते ही गिरफ्तार कर ले। प्रख्यात वकील उज्जवल निकम कहते
हैं कि यदि निर्वासित करने वाले देश के साथ भारत के अच्छे संबंध हों, तो
प्रत्यर्पण की तुलना में निर्वासन ज्यादा कारगर रहता है।
प्रत्यर्पण में एक तो लंबी कानूनी प्रक्रिया का पालन करना पड़ता है। दूसरे
भारत लाए जाने पर भी आरोपी को सजा देने में प्रत्यर्पण करनेवाले देश के कानून का
ध्यान रखना पड़ता है। निर्वासन के मामले अपेक्षाकृत आसान होते हैं। दो देशों के बीच
अच्छे संबंधों के आधार पर यह काम त्वरित गति से हो सकता है। साथ ही, मुकदमा
चलाकर आरोपी को भारतीय कानून के अनुसार सजा दिलाई जा सकती है।
संभवतः यही कारण रहा होगा कि तीन देशों के संयुक्त ऑपरेशन में भारत ने राजन
को ऑस्ट्रेलिया से प्रत्यर्पित करवाने के बजाय इंडोनेशिया से निर्वासित करवाना
ज्यादा बेहतर समझा। ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि है, जबकि
इंडोनेशिया के साथ नहीं है। लेकिन इंडोनेशिया के साथ भारत के राजनयिक संबंध अच्छे
हैं।
प्रत्यर्पण के दो मामलों में भारत सरकार पहले गच्चा खा चुकी है। गुलशन
कुमार हत्याकांड का आरोपी संगीतकार नदीम इस मामले में अपना नाम आते ही लंदन भाग
गया था। इंग्लैंड के साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि है। लेकिन सितंबर 1999 में
लंदन की एक अदालत ने यह मानने से ही इन्कार कर दिया कि नदीम के खिलाफ पहली नजर में
कोई मामला बनता भी है।
फिर भारत सरकार इस मामले को वहां के उच्च न्यायालय में ले गई। वहां भी उसे
मुंह की खानी पड़ी। 18 मार्च, 2001 को वहां की सर्वोच्च
अदालत हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने भी उच्च न्यायालय के फैसले पर मुहर लगाकर नदीम के
प्रत्यर्पण पर हमेशा के लिए विराम लगा दिया।
प्रत्यर्पण का दूसरा चर्चित मामला अबू सलेम का है। उसे पुर्तगाल से
प्रत्यर्पित करके लाया गया है। लेकिन इस प्रत्यर्पण के साथ बहुत सी कानूनी
बाध्यताएं भी जुड़ गई हैं। इसलिए कई हत्याओं के आरोप में शामिल सलेम को भारतीय
कानून के मुताबिक मृत्युदंड नहीं दिया जा सकता।
सिरदर्द बनेगी छोटा राजन की सुरक्षा
भारत लाए जाने के बाद छोटा राजन की सुरक्षा सरकार के लिए सिरदर्द होगी।
छोटा राजन का ज्यादातर आपराधिक रिकॉर्ड मुंबई का है। लिहाजा उसे मुंबई के ही किसी
जेल में रखा जाएगा, ताकि करीब 67 मामलों में पूछताछ करके
उस पर यहीं मुकदमा चलाया जा सके।
लेकिन वरिष्ठ वकील उज्जवल निकम मानते हैं कि उसकी सुरक्षा के लिए
महाराष्ट्र सरकार को विशेष बंदोबस्त करना पड़ेगा। सुरक्षा मानकों के हिसाब से यह
बंदोबस्त 26/11 के गुनहगार अजमल कसाब के बराबर या उससे भी ज्यादा हो
सकता है।
महाराष्ट्र की जेलों में गैंगवार अथवा एक आरोपी द्वारा दूसरे पर हमला करने
की घटनाएं अक्सर होती रही हैं। विचाराधीन कैदियों को रखने वाला मुंबई का आर्थर रोड
जेल भी इससे अछूता नहीं है। जुलाई 2010 में इसी जेल में अबू
सलेम पर दाऊद गिरोह के मुस्तफा दोसा उर्फ मुस्तफा मजनूं ने हमला कर दिया था।
सलेम के ही एक साथी मेहंदी हसन पर भी आर्थर रोड जेल में हमला हो चुका है।
नासिक और ठाणे जेल भी गैंगवार से अछूते नहीं हैं। सरकार को अदालती सुनवाई के लिए
भी विशेष बंदोबस्त करना पड़ सकता है। ऐसी व्यवस्था कसाब के लिए आर्थर रोड जेल में
की गई थी।
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