वसई-विरार महानगरपालिका के पहले चुनाव में वोटरों ने एक बार फिर से बहुजन विकास आघाड़ी के प्रति अपना विश्वास जताते हुए मनपा की कमान उसे सौंप दी है। पिछले विधानसभा चुनाव में बविआ के उम्मीदवार के खिलाफ सभी विरोधी दलों ने साझा उम्मीदवार मैदान में उतार कर उसे करारी मात दी थी और इसे ठाकुर साम्राज्य के पतन की शुरुआत बताया था। मगर इस हार के बावजूद बविआ के मुखिया हितेंद्र ठाकुर हताश नहीं हुए। उन्होंने तब कहा था कि जल्दी ही यहां के वोटरों को यह अहसास हो जाएगा कि उन्होंने गलत फैसला किया है। मनपा के चुनाव परिणाम ने उनके इस विश्वास को सही साबित कर दिया है। असल में विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद नये विधायक विवेक पंडित के कारनामों ने वसई को भले ही देश भर में चर्चित कर दिया हो, मगर स्थानीय लोगों में इससे नाराजगी ही पैदा हुयी। 53 गावों को मनपा से अलग कराने की अपनी मांग पर जोर डालने के लिए उनके द्वारा किये गये आंदोलन की वजह से गांव के लोगों को परेशानी झेलनी पड़ी। वैसे भी विधानसभा चुनाव के जन आंदोलन समिति का जिस तरह गठन हुआ था, वह अधिक समय तक चलने वाला नहीं था, क्योंकि इसके घटकों कहीं कोई मेल नहीं था। विस चुनाव के तुरंत बाद ही इस गठबंधन में बिखराव आने लगा था। मनपा चुनाव में यह खुल कर सामने आ गया। इस चुनाव में एक ही वार्ड बविआ के खिलाफ जहां जआंस का प्रत्याशी खड़ा था, वहीं उसके घटक दल का उम्मीदवार भी मैदान में था। जैसे एक वार्ड अगर जआंस का उम्मीदवार है तो, वहीं से शिवसेना का, या बीजेपी का, या कांग्रेस का, या मनसे का उम्मीदवार भी मैदान में था। जबकि विस चुनाव में ये सभी दल जआंस के साथ थे। इस बिखराव का फायदा भी बविआ को मिला। इस चुनाव परिणाम पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए द वॉयस आफ पिपल्स के अध्यक्ष मेल्विन सिक्वेरा ने कहा कि वसई का बहुत बड़ा क्षेत्र गांवों में बसता है। वहां से काफी लोग नौकरी करने मुंबई आते हैं और इसके लिए उन्हें पहले बस का लंबा सफर तय कर वसई रोड स्टेशन आना पड़ता है। कई इलाके ऐसे हैं जहां दिन में एक बार बस आती है और एक बार ही वापस आती है। विवेक पंडित के आंदोलन की वजह से इन बसों का आना-जाना ठप हो गया, जिसकी वजह से लोग अपने काम पर नहीं जा सके। ऐसा एक नहीं, दो-तीन बार हुआ। इससे उन गांवों के लोग भी परेशान हुए जिन्होंने उन्हें वोट दे कर विधानसभा में भेजा था।
Tuesday, June 1, 2010
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