Wednesday, November 25, 2009

गृह मंत्री पी. चिंदबरम की भरपूर कोशिश के बावजूद 'तटीय सुरक्षा' अभी भी बड़ा 'मुद्दा' बनी हुई है।

मुंबई हमले के एक साल में केंद्र सरकार ने आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। लेकिन तटीय सुरक्षा का अहम सवाल अभी भी अपनी जगह कायम है। तटीय सुरक्षा के लिए 2005 में बनी योजना पर अमल की गति अभी भी धीमी है। इस योजना में राज्य सरकारों की अहम भूमिका है। लेकिन आपसी तालमेल में कमी के कारण उम्मीद के मुताबिक काम नहीं हो पाया है। 26 नवंबर 08 के हमले के बाद जो पहला काम प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किया था वह था गृह मंत्री बदलने का। हमले के चार दिन बाद 30 नवंबर को शिवराज पाटिल को हटाकर पी. चिदंबरम गृह मंत्री बनाए गए थे। साल भर में चिदंबरम को भले ही मनचाही सफलता नहीं मिली हो लेकिन उन्होंने देश को अपने होने का अहसास तो कराया है। पहले दिन से राज्यों के सतत संपर्क में चल रहे चिदंबरम ने सबसे ज्यादा महत्व खुफिया सूचनाओं को एकत्र किए जाने और उन्हें आपस में बांटने को दिया। उन्होंने राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मुख्य सचिवों तथा पुलिस महानिदेशकों से सीधी बात की। साथ ही यह संदेश दिया कि केंद्र सरकार अब वास्तव में आतंकवाद से लड़ना चाहती है। मल्टी एजेंसी सेंटर: खुफिया सूचनाओं के सतत प्रवाह के लिए सरकार ने सबसे पहले 'मल्टी एजेंसी सेंटर' स्थापित किया। 24 घंटे और सातों दिन सक्रिय रहने वाले इस सेंटर का मुख्य दायित्व था सभी सुरक्षा एजेंसियों और राज्य सरकारों के साथ सूचनाओं का आदान प्रदान करना। अन्य एजेंसियों से भी कहा गया कि वे अपनी सूचनाएं मल्टी एजेंसी सेंटर तक पहुंचाएं। दिल्ली में मुख्यालय के साथ देश के 30 प्रमुख स्थानों पर इस सेंटर की शाखाएं खोली गईं। साथ ही राज्यों की खुफिया शाखाओं को भी सक्रिय किया गया है। इतना कहा जा सकता है कि इस समय पिछले साल की तुलना में खुफिया सूचनाओं के मामले में बेहतर तालमेल है। एनएसजी हब: मुंबई हमले के समय एनएसजी के कमांडो मुंबई देर से पहुंचे थे। देर की वजह क्या थी, यह एक अलग मुद्दा है, लेकिन उससे इतना अवश्य हुआ कि सरकार को यह समझ में आ गया कि एनएसजी को सिर्फ दिल्ली में ही केंदित करके नहीं रखा जाना चाहिए। इसी वजह से अब तक हैदराबाद, चेन्नै, बेंगलुरु और मुंबई में एनएसजी के केंद खोले जा चुके है। इन चारों केंद्रों में 250-250 कमांडो तैनात किए गए हैं। सरकार का यह भी दावा है कि अब किसी अनहोनी की स्थिति में एनएसजी तत्काल मौके पर पहुंचेगी। एनआईए: मुंबई हमले के बाद सरकार ने जो सबसे बड़ा काम किया वह था राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) का गठन। हालांकि यह एजेंसी मुंबई हमले की जांच नहीं कर रही है पर नकली नोट और आतंकवाद से जुड़े अन्य मामलों की जांच का जिम्मा उसे सौंपा गया है। इनमें चर्चित हेडली-राणा मामला भी इसी एजेंसी के पास है। गैर कानूनी गतिविधि निरोधक कानून: पोटा खत्म कर चुकी केंद्र सरकार ने हमले के बाद सभी विपक्षी दलों को इस नए कानून के लिए राजी कर लिया। इसी के चलते गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून संसद में सर्वसम्मति से पारित हुआ था। केंद्रीय अर्द्धसैनिक बल: इस हमले के बाद केंद्र सरकार ने केंदीय अर्द्धसैनिक बलों को और मजबूत करने व इन बलों की संख्या बढ़ाने का ऐलान किया है। सीआरपीएफ और सीआईएसएफ में नई भर्तियां की जा रही है। सीआरपीएफ की 38 नई बटैलियन गठित करने का भी ऐलान किया है। सरकार पुलिस सुधारों पर भी जोर दे रही है। तटीय सुरक्षा: हालांकि 26 नवंबर के हमले के बाद सरकार लगातार तटीय सुरक्षा को मजबूत करने का दावा कर रही है। लेकिन इस क्षेत्र में अभी तक वांछित सफलता नहीं मिली है। केंद्र सरकार 2005 में शुरू की गई तटीय सुरक्षा योजना के अमल पर जोर दे रही है। तटवर्ती राज्यों को आधुनिक गश्ती नौकाएं देने, तटीय थाने और पुलिस चौकियां खोलने, मछुआरों को पहचान पत्र देने और नावों का रजिस्ट्रेशन कराने का काम बेहद धीमी गति से चल रहा है। गृह मंत्रालय के तमाम प्रयासों के बाद भी राज्यों के साथ बेहतर तालमेल नहीं बन पा रहा है। हालांकि सरकार का दावा है कि इस हमले के बाद तटीय सुरक्षा के लिए एक नई योजना तैयार की जा रही है। लेकिन यह सच है कि तटीय सुरक्षा के मामलों में घोषित ज्यादातर उपायों पर किसी न किसी स्तर पर विचार विमर्श ही चल रहा है। गृह मंत्रालय से अलग कैबिनेट सचिवालय ने भी कोस्टल सिक्युरिटी के लिए एक प्रस्ताव तैयार किया था। करीब 16 हजार करोड़ के इस प्रस्ताव में तटीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए कई अहम सुझाव दिए गए थे। लेकिन अभी तक यह प्रस्ताव 'विचार' के स्तर पर ही अटका है। सच्चाई यह है कि गृह मंत्री पी. चिंदबरम की भरपूर कोशिश के बावजूद 'तटीय सुरक्षा' अभी भी बड़ा 'मुद्दा' बनी हुई है।

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