Thursday, July 2, 2009

हर घंटे औसतन 6,000 गाड़ियां गुजरीं और सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक कुल 72,000 गाड़ियों ने इस ब्रिज का उपयोग किया।

मुम्बई शहर के दूसरे गेटवे का दर्जा पाने वाले बांदा-वर्ली सी-लिंक के बजट और समय को लेकर भले ही लोगों में अलग-अलग राय हो, मगर बुधवार को जब यह आम जनता के लिए फ्री में खोला गया तो उसे इतना अच्छा रिस्पांस मिला कि ब्रिज और उसके अप्रोच रोड पर ट्रैफिक जाम सी स्थिति हो गई। बुधवार को गाड़ियों का ऐसा तांता लगा कि कुछ मिनटों के इस सफर को पूरा करने में लोगों को घंटों लग गए। ट्रैफिक पुलिस के एक आकलन के मुताबिक इस सी-लिंक से सफर का तुत्फ उठाने के लिए हर घंटे औसतन 6,000 गाड़ियां गुजरीं और सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक कुल 72,000 गाड़ियों ने इस ब्रिज का उपयोग किया। महाराष्ट्र स्टेट रोड डिवेलपमेंट कॉरपोरेशन (एमएसआरडीसी) के अधिकारी ने बताया कि यह संख्या हमारी उम्मीदों से कहीं ज्यादा थी। सुबह 10 बजे तक 15,000 से भी ज्यादा वाहन पुल से गुजर चुके थे। चूंकि मौसम सुहावना है, इसलिए वाहनों की तादाद और बढ़ने की ही उम्मीद है। समुद्री पुल का इस्तेमाल करने वालों में ज्यादातर युवा और परिवार वाले थे, जो यहां पुल की खूबसूरती देखने आए थे। हैरानी की बात नहीं कि 5.6 किलोमीटर लंबे इस रास्ते को पार करने में एक घंटे से भी ज्यादा का वक्त लगा। इसके उलट इकलौता वैकल्पिक रास्ता कहे जाने वाले माहिम कॉजवे पर ट्रैफिक नदारद था जहां आम दिनों में भारी ट्रैफिक जाम की स्थिति हो जाया करती थी। समुदी पुल के दोनों छोर उत्तरी (बांदा) और दक्षिणी (वलीर्) पर सुबह से ही भारी ट्रैफिक था। विले पालेर् में रहने वाले सॉफ्टवेयर प्रफेशनल दुकूल पांड्या ने बताया कि मैं परिवार के साथ सुबह 9 बजे ही पुल पर पहुंच गया था, पर वर्ली साढ़े 11 बजे से पहले नहीं पहुंच पाया था। माना जा रहा है कि मुम्बईकरों का यह रेला 5 जुलाई तक चलने वाला है, क्योंकि इस दिन तक इस ब्रिज से गुजरने वाले कारों से कोई टोल टैक्स नहीं लिया जाएगा। एक्सपर्ट्स की राय में यह देखना दिलचस्प होगा कि 6 जुलाई से कितने यात्री इस ब्रिज का उपयोग करेंगे, क्योंकि इसका जो टोल टैक्स फिक्स किया गया है, अपेक्षाकृत ज्यादा बताया जा रहा है।
बांदा से वर्ली जाने वाले यात्रियों को वलीर् एंड पर कुछ दूसरे ही अनुभव का सामना करना पड़ा। जैसे ही वर्ली एंड पर ब्रिज का सिरा खत्म हुआ वहां लोगों को बीजेपी के कार्यकर्ताओं का विरोध प्रदर्शन देखने को मिला। महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे इन कार्यकर्ताओं का कहना था कि इस सी-लिंक का नामकरण वीर सावरकर के नाम पर होना चाहिए, न कि राजीव गांधी के नाम पर। उनका कहना था कि विकास के इस नाम पर कम से कम राजनीति नहीं होनी चाहिए।

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