Wednesday, July 8, 2015

अभिनेत्री पल्लवी जोशी ने सदस्य पद से इस्तीफा दे दिया

टीवी और फिल्म की जानी-मानी अभिनेत्री पल्लवी जोशी ने फिल्म ऐंड टेलिविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) के सदस्य पद से इस्तीफा दे दिया है। ऐसा करके उन्होंने साफ कर दिया कि वे गजेंद्र चौहान को संस्थान के अध्यक्ष पद से हटाने की मांग कर रहे आंदोलनरत छात्रों के साथ हैं।
पल्लवी ने एनबीटी से हुई खास मुलाकात में बताया, 'सरकार ने मेरे अनुभवों का लाभ लेने के लिए मुझे इस पद के लिए चुना था और अगर मैं संस्थान को कोइ लाभ न दे सकूं तो मेरा पद पर बने रहने का क्या फायदा?' गौरतलब है कि पिछले 25 दिनों से एफटीआईआई के छात्र आंदोलन कर रहे हैं। मुझे भारतीय सिनेमा का भविष्य खतरे में दिख रहा है। ये छात्र आगे चलकर फिल्म और टीवी उद्योग के भविष्य को तराश सकते हैं। सिनेमा मनोरंजन से परिपूर्ण एक कला है। इस विलक्षण कला और यथार्थवाद के बीच एक संतुलन कायम रखने के लिए आपको बड़े सपने देखने की आवश्यकता है। कोई भी सिनेमा लार्जर दैन लाइफ ख्वाबों के बिना नहीं बन सकता। अगर संस्थान से असंतुष्ट छात्र निकलेंगे तो आगे चलकर इंडस्ट्री में आत्मविश्वास की कमीवाले उलझे निर्माता, निर्देशक, टेक्निशंस की पौध तैयार होगी और मैं अपनी इंडस्ट्री का ऐसा भविष्य हरगिज नहीं चाहती।
छात्रों और मेरे इस कदम को कई जानी-मानी हस्तियों का समर्थन मिला है। उनके इस फैसले पर मैं खुश भी हूं और दुखी भी। खुशी इस बात की है कि वे छात्रों के समर्थन में आगे आए और दुख इस बात का है कि नौबत यहां तक क्यों आई! मुझे लगता है इसमें सरकार सबसे ज्यादा गलती पर है।
मैं सोच रही हूं कि अगर एफटीआईआई का निजीकरण किया गया तो छोटे कस्बों और शहरों से आईं आर्थिक तौर पर पिछड़ी प्रतिभाएं अपने सपनों को कैसे पूरा करेंगी। आपको लगता है कि ये लोग विसलिंग वुड्स जितनी फीस अदा कर पाएंगे? जिस तरह से यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वे देश में विश्व स्तर के इंजिनियर दे और इसके लिए आईआईटी की कई प्रस्तावित शाखाएं अभी भी कतार में है।
बेहतरीन मैनेजर्स और सीईओज की पैदावार की जिम्मेदारी भी सरकार की है और इसीलिए आईआईएम और बी-स्कूलों के प्रस्तावों पर जोर दिया जाता है। ऐसे में क्या सरकार की जिम्मेदारी नहीं बनती कि विश्व स्तर के फिल्मकार, टेक्निशंस, कलाकार की नई पैदावार दे? मनोरंजन उद्योग का भारतीय अर्थव्यवस्था में सालाना तकरीबन 1.40 बिलियन का योगदान होता है। ये कोई छोटी-मोटी इंडस्ट्री नहीं है। इंडस्ट्री को भी इस बारे में सोचना चाहिए।

पिछले दिनों गवर्निंग काउंसिल के सदस्य रह चुके छायाकार संतोष सिवन ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने एनबीटी को बताया, 'मैं नहीं चाहता था कि छात्र हड़ताल करें, इसलिए मैंने अपना पद त्याग दिया था। हालांकि उसके बाद स्थिति उलझती चली गई। मेरे लिए यह दुखद है।
मैं इस संस्थान का छात्र भी रहा हूं। मैं इसके राजनीतिक पहलू में नहीं पड़ना चाहता। इससे पहले भी बीजेपी की सरकार रही और तब एफटीआईआई के गवर्निंग काउंसिल के अध्यक्ष पद पर विनोद खन्ना विराजमान थे। मुद्दा यहां यह है कि संस्थान की गरिमा और पद की जिम्मेदारी के अनुरूप ऐसी हस्ती हो, जिससे छात्र सामंजस्य स्थापित करके मार्गदर्शन हासिल कर सकें।'

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