Wednesday, February 11, 2015

एनसीपी ने अभी से शिवसेना को सरकार छोड़ने पर समर्थन देने की बयानबाजी शुरू कर दी

दिल्ली विधानसभा के नतीजे देश के अन्य हिस्सों की तरह महाराष्ट्र की राजनीति पर गहरा असर डाले बिना नहीं रहेंगे। सबसे बड़ा असर मुंबई के राजनीतिक गणित पर पड़ने की अटकल लगाई जा रही है। ठीक दो वर्ष बाद फरवरी 2017 में मुंबई महानगरपालिका के चुनाव होने हैं। राज्य सरकार के भीतर शिवसेना और बीजेपी के बीच चल रही अंदरूनी रस्साकशी बीएमसी के इस चुनाव का खेल बना-बिगाड़ सकती है। लोकसभा और विधानसभा के दो चुनावों में कांग्रेस और एनसीपी पार्टियां लगातार बुरी तरह मार खा चुकी हैं। इनके कार्यकर्ताओं का मनोबल इससे सुधरेगा, यह उम्मीद दिल्ली के नतीजों से जरूर बंधी होगी।
अस्तित्व के संकट से जूझ रही राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस को भी आम आदमी पार्टी को आशा की किरण दिखाई दे, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। सत्ता में शामिल होकर भी पद न पाने वाली रामदास आठवले, राजू शेट्टी और विनायक मेटे जैसे नेताओं की सरकार में हिस्सेदारी पाने की आशाएं पल्लवित हो सकती हैं।

बहरहाल, शिवसेना की खुशी छिपाए नहीं छिप रही। महाराष्ट्र विधानसभा में बीजेपी ने जब से 129 सीटें जीतीं हैं, तब से उसके नेताओं ने शिवसेना को कमतर साबित करने का एक भी मौका नहीं छोड़ा है। वैसे, दिल्ली में शिवेसना ने बीजेपी को सबक सिखाने के लिहाज से 19 उम्मीदवार खड़े किए थे। यह अलग बात है कि इनमें राजौरी गार्डन से शिवसेना के टिकट पर लड़ रहे गुरूबक्श सिंह ही एक हजार से ज्यादा वोट बटोर पाए हैं। अधिकांश 100 वोट के अंदर सिमट कर रह गए।
शिवसेना आगामी बीएमसी चुनाव में सत्ता बचाने के लिए लड़ेगी। उसमें आज बीजेपी ही सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर खड़ी दिखाई दे रही है। मुंबई की तरह दिल्ली में सभी लोकसभा सीटें बीजेपी ने जीती थीं। नौ महीने बाद बीजेपी का दिल्ली में क्षय देखकर शिवसैनिकों का मनोबल निश्चित ही बढ़ेगा। उद्धव ने मोदी को लेकर जो टिप्पणियां की हैं, उसे इसी के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए।
कांग्रेस को यह अहसास है कि उसे आगे अकेले ही लड़ना होगा। इसी के मद्देनजर पार्टी ने आंदोलन शुरू किए हैं। हालांकि संगठन के मौजूदा हालात को देखकर यही कहा जा सकता है कि 'दिल्ली अभी दूर है'। आगे चलकर शिवसेना की जब भी बीजेपी के साथ अनबन होती है, तो एनसीपी इसका फायदा उठाना चाहेगी। बिना किसी की बैसाखी पकड़े उसके लिए आगे का सफर तय करना आसान नहीं होगा। वैसे, शिवसेना के पास तब राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस के साथ जाने का भी विकल्प होगा। मगर चूंकि उद्धव और राज, दोनों ही चचेरे भाई उसी मराठी वोट बैंक के लिए स्पर्धा कर रहे होंगे। ऐसे में समझौता आसान नहीं होगा। हो सकता है बीजेपी राज की पार्टी को अपने साथ ले ले।
राजनीति के नित नए बदलते खेल में शरद पवार की पार्टी पाला बदलकर शिवसेना के साथ नजर आए, तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए। एनसीपी ने तो अभी से शिवसेना को सरकार छोड़ने पर समर्थन देने की बयानबाजी शुरू कर दी है। आज बीजेपी के साथ नजर आ रहे आठवले, शेट्टी और मेटे जैसे नेताओं की पार्टियां भी पाला बदलने के खेल में जुट गईं तो राजनीतिक चौपड़ के खेल में अनिश्चितता बढ़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

No comments:

Post a Comment