Friday, May 30, 2014

वोट बैंक उत्तर-भारतीय समाज से दूर - कांग्रेस

उत्तर-भारतीयों को वोट बैंक समझने वाली कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में जबर्दस्त धक्का लगा, फिर भी वह कुछ सीखने के लिए तैयार नहीं है। वह अपने वोट बैंक उत्तर-भारतीय समाज से दूर होती जा रही है। उत्तर-भारतीयों को कांग्रेस ने न तो सत्ता में स्थान दिया और नहीं संगठन में कोई पद। किसी महामंडल की सदस्यता और अध्यक्षता तक नहीं दी। कांग्रेस की इस बेरुखी से उत्तर-भारतीयों की निकटता बीजेपी और एनसीपी से बढ़ती जा रही है। मुंबई महानगर के अलावा नाशिक, पुणे, औरंगाबाद सहित राज्य के अन्य जिलों में उत्तर-भारतीय मतदाताओं का अच्छा-खासा प्रभाव है।
कांग्रेस की सत्ता जब-जब राज्य में आई तब-तब पार्टी ने किसी न किसी उत्तर-भारतीय को मंत्रिमंडल में स्थान दिया है, लेकिन 2004 के बाद किसी भी उत्तर-भारतीय को कांग्रेस ने मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी। कृपाशंकर सिंह के बाद किसी भी उत्तर-भारतीय को कांग्रेस ने कोई मंत्री पद नहीं दिया और न ही महामंडल में स्थान। महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमिटी के संगठन से भी दूर कर दिया। भांडुप के जयप्रकाश सिंह अंतिम व्यक्ति थे जिन्हें महाराष्ट्र कांग्रेस में जगह मिली थी।
हालांकि, कांग्रेस के पदाधिकारी कहते हैं कि नसीम खान और सतीश चर्तुवेदी को कैबिनेट में लिया गया था, लेकिन चर्तुवेदी ने कभी अपने को उत्तर-भारतीय माना ही नहीं, क्योंकि वे मूलत: नागपुर के थे। वहीं, नसीम खान को पार्टी डबल सिमकार्ड के तौर पर उपयोग करती है। मुस्लिम की बात आती है, तो नसीम खान का नाम आगे करती है, और जब उत्तर-भारतीय का मसला आता है तब भी उन्हीं को आगे करती है।

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