Monday, December 23, 2013

विरोधियों पर किए गए तीखे कटाक्ष। मोदी के भाषणों का मुख्य आकर्षण बनकर उभरे

प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद से नरेंद्र मोदी के भाषणों के मुद्दे, बोलने का अंदाज और भाव-भंगिमा, इन सभी में फर्क साफ नजर आने लगा है। अटल बिहारी वाजपेई की शैली में लिए गए 'पाज'। आरोह-अवरोह के उतार-चढ़ाव, जनता से सीधे संवाद की शैली और विरोधियों पर किए गए तीखे कटाक्ष। मोदी के भाषणों का मुख्य आकर्षण बनकर उभरे हैं।
मोदी के वक्तृत्व कौशल में सबसे बड़ी सुधार विषय-वस्तु के संयोजन में देखा जा सकता है। वे पहले से कहीं संयत भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। हर बार की तरह उनके प्रतिद्वंद्वी राहुल गांधी उनके निशाने पर हैं पर 'युवराज' का संबोधन तो दूर वाराणसी और अब मुंबई की रैलियों में वे उनका सीधा उल्लेख तक टालते दिखाई दिए हैं। 'कांग्रेस के एक बड़े नेता' के नए संबोधन में थोड़ा सा आदरभाव दिखाई देता है। हालांकि ये अदब ज्यादा देर नहीं ठहरता। 'दिल्ली में उपदेश देता है', 'बोलता एक है, करता दूसरा है'- वे 'आप' की तरफ जाने की बजाए 'तुम' से भी निचली दहलीज की बेतक्कलुफी पर उतर आते हैं। कम से कम तालियां तो यही साबित करती हैं, जनता को यह अच्छा लगता है।
हर बार की तरह मोदी ने मराठी में मुंबई के लोगों का अभिवादन कर रैली की शुरुआत की। कुछ वाक्य बिलकुल साफ-सुथरी मराठी में बोलने के बाद वे राष्ट्रभाषा हिंदी की तरह मुड़ जाते हैं। महाराष्ट्र की बड़ी हस्तियों को याद करते हैं और 1950 से पहले महाराष्ट्र और गुजरात एक ही राज्य का हिस्सा होने की दलील देते हैं। ध्यान रखते हैं कि दोनों राज्यों के गठन के समय की राजनीतिक तल्खी मामले को कहीं बिगाड़ न दे। पुराने संयुक्त राज्य को उसके वास्तविक 'बॉम्बे स्टेट' के नाम से पुकारने की बजाए उसे 'बृहद महाराष्ट्र्' का नया नाम देना पसंद करते हैं। महाराष्ट्र को गुजरात का बड़ा भाई बताना नहीं चूकते। 24 घंटे बिजली वाले गुजरात की तुलना 'अंधियारे' महाराष्ट्र से करते हैं। सिंचाई घोटाले से लेकर आदर्श घोटाले तक की मिसाल देते हैं।
हर बार इस दुर्दशा के लिए यहां का राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराने की सावधानी बरतते चलते हैं। तुलना में गुजरात कहीं बड़ा दिखाई देता है, वे जब यह कहते हैं, 'लेकिन भाइयो-बहनो... जब गुजरात अलग हुआ तब चर्चा होती थी कि राज्य प्रगति कैसे करेगा। पानी नहीं है, प्राकृतिक संपदा नहीं है, उद्योग नहीं हैं और इतना रेगिस्तान है और उधर पाकिस्तान है। लेकिन, अलग होने के बाद भी गुजरात ने विकास की ऊंचाइयों को छुआ है। इससे पहले भारी संख्या में जुटे भाषाई वर्ग को संभालते हुए मुंबई को गुजराती भाषा का मायका बताते हुए एक नया रिश्ता जोड़ चुके होते हैं।
भूमिका बांधते हुए कहते हैं कि 'कुछ लोगों के पेट में दर्द होता है, इसलिए आज गुजरात के बारे में नहीं बोलूंगा'। इसके बाद मध्य प्रदेश को 'बीमारू' राज्य से उबारने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चव्हाण की स्तुति करने लगते हैं। एमपी और छत्तीसगढ़ ने देश के अन्न भंडार भर दिए हैं, कहते हुए दोनों बीजेपी शासित प्रदेशों की गौरव बखान करते हैं। इसके बाद किसानों का आत्महत्या जैसे महाराष्ट्र के मसलों को जोड़ते ही विचार प्रवाह फिर गुजरात की ओर लौटने लगता है। तुलनात्मक अध्ययन का नया दौर शुरू हो जाता है। वे कहते हैं, गुजरात में 14 मुख्यमंत्री बने लेकिन यहां 26 मुख्यमंत्री बने। सोचिए यहां की राजनीति के तौर-तरीके कैसे होंगे। एक आता है तो दूसरा भगाने में लग जाता है। हमारे गुजरात और महाराष्ट्र में सीमा के दोनों तरफ चेक पोस्ट हैं। दोनों के रेट बराबर हैं। लेकिन महाराष्ट्र के बजाय गुजरात के चेकपोस्ट में टेक्नॉलजी की मदद से काम होता। गुजरात की इनकम अपने चेकपोस्ट से 1470 करोड़ है जबकि महाराष्ट्र की 437 करोड़। महाराष्ट्र सरकार बताए कि 1033 करोड़ रुपये कहां चले जाते हैं?
मोदी की चाय की दुकान की पृष्ठभूमि का मुद्दा जब से सपा नेता नरेश अग्रवाल ने उठाया है, तब से गंगा में काफी पानी बह चुका है। पटना रैली के पास चायवालों को बांटकर स्थानीय बीजेपी ने इस मुद्दा बना डाला। इसी सप्ताह वाराणसी की रैली में मोदी खुद मंच से गरजे- 'चाय बेची है, देश नहीं बेचा है'। मुंबई रैली में 10 हजार चायवालों को VIP पास दिए जाने का उल्लेख करते हुए मोदी बोले, अब चायवाले VIP बन गए हैं। समय बदल रहा है, अब देश का हर गरीब VIP होगा'। मोदी एक छोटे से वर्ग को नई व्यापकता प्रदान कर चुके होते हैं। 'बेराजगार घूमता नौजवान' और उसकी नौकरी की राह ताकती 'बूढ़ी गरीब मां' -ऐसे पात्र हैं जिनके बिना मोदी का कोई भाषण पूरा नहीं होता। इन्हीं दोनों को समाहित करते हुए मोदी गुजरात में सिफारिश और घूस को दरकिनार करने वाली नई नियुक्ति तकनीक बताते हैं। वे कहते हैं- '30 हजार टीचर्स की भर्ती के लिए हमने इंटरव्यू नहीं लिया। हमने राज्य के युवाओं से अपनी जानकारी कंप्यूटर में फीड करने के लिए कहा। हमने युवाओं से उनके मार्क्स और क्वॉलिफिकेशन के बारे में पूछा। जिसकी क्वॉलिफिकेशन सबसे ज्यादा थी, कंप्यूटर की मदद से उन्हें चुना और उन्हें ऑफर लेटर भेज दिया।'
कांग्रेस पार्टी को वे देश की हर समस्या की जड़ बताते हैं। वे कहते हैं, कांग्रेस पार्टी का चरित्र जब तक हम नहीं समझेंगे, देश की समस्याओं का समाधान नहीं सूझेगा। देश की समस्याओं का कारण देश की जनता नहीं है। हमारी समस्याओं की वजह है कांग्रेस शासित सरकारें। इसलिए हमें कांग्रेस मुक्त भारत का सपना साकार करना होगा। साथ ही यह भी आरोप लगाते हैं कि कांग्रेस वोट बैंक की राजनीति में डूब कर समाज को तोड़ने और बांटने में जुटी हुई है। अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते कांग्रेस ने डिवाइड ऐंड रूल की पॉलिसी अपना ली है। नदियों के लिए लड़ाया जा रहा है लोगों को। पानी के बंटवारे को लेकर कई सालों से लड़ाई लड़ रहे हैं लोग और केंद्र में बैठी सरकार को भाई को भाई से लड़ाने में आनंद आ रहा है। देश को वोट बैंक की राजनीति से उबारना होगा, तभी देश समस्याओं से मुक्त होगा। ठोस तर्क भी देते हैं और लोग सहमति में सिर हिलाते दिखाई देते हैं। वे जनता से पूछते हैं देश का काला धन कहां है। जवाब गूंजता है तो हलकी मुस्कान के साथ कहते हैं, जब देश का बच्चा-बच्चा जानता है, तो कांग्रेस क्यों कार्रवाई नहीं करती। कांग्रेसियों का काला पैसा स्विस बैंक में है, यह तर्क गले उतर जाता है।
 
वोट बैंक की राजनीति पर प्रहार करते समय वे वोटों के लिए मुस्लिमों को ठगाने का आरोप लगाते हैं। वे कहते हैं- कांग्रेस ने 90 जिले ऐसे चुने थे, जहां पर मुस्लिम ज्यादा हैं। ऐलान किया कि इन जिलों के विकास के लिए अलग बजट का प्रावधान किया जाएगा। हिंदुस्तान के मुस्लिम भाइयों को लगने लगा कि चलो अब कुछ भला होगा। अभी पार्ल्यामेंट में किसी ने पूछा कि आपने जो योजना घोषित की थी, उसमें आपने क्या खर्च किया। आपको यकीन नहीं होगा कि सरकार ने जवाब दिया है कि 3 साल में एक रुपया खर्च नहीं हुआ है।
 


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