Monday, January 4, 2016

एक आंतरिक परिपत्र उसके नुकसान के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता

इंश्‍योरेंस कंपनियां पॉलिसी को रिन्‍यू करने के दौरान एकतरफा बदलाव कर देती हैं। कई बार इस मामले में बीमित व्‍यक्‍ित को जानकारी भी नहीं देती हैं। इस तरह के बदलाव गैरकानूनी हैं। बीमित व्‍यक्‍ित बीमा पॉलिसी की मूल शर्तों के अनुसार, सैटलमेंट पाने का हकदार होगा।
केवी अय्यर ने न्‍यू इंडिया इंश्‍योरेंस से मेडिक्‍लेम पॉलिसी ली थी। यह साल दर साल नियमित रूप से रिन्‍यू होती रही। इसमें कुल बीमित राशि सात लाख रुपए थी, जिसमें से पांच लाख रुपए बेसिक इंश्‍योरेंस के थे और दो लाख रुपए बोनस के रूप में मिले थे।
वर्ष 2009-10 में अय्यर ने मोतियाबिंद की सर्जरी कराई, जिसमें कुल 91 हजार 916 रुपए का खर्च आया। उनके क्‍लेम को बीमा कंपनी की ओर से हेल्‍थ इंडिया टीपीए सर्विस प्राइवेट लिमिटेड के द्वारा निपटाया गया। इस कंपनी ने अय्यर को 24 हजार रुपए प्रति आंख के हिसाब से महज 48 हजार रुपए ही दिए।
हालांकि, सम इंश्‍योर्ड पूरे दावे को कवर करने के लिए पर्याप्‍त था। क्‍लेम पेमेंट एडवाइस में कहा गया कि यह 48 हजार रुपए फुल एंड फाइनल सेटलमेंट है। मगर, अय्यर ने इस डिस्‍चार्ज वाऊचर में साइन करने से इंकार कर दिया। इसके बजाय उन्‍होंने कम दिए गए 43 हजार 916 रुपए और देने के लिए पत्र लिखा।
इस पर बीमा कंपनी ने जवाब दिया कि मोतियाबिंदु की सर्जरी के लिए प्रति आंख 24 हजार रुपए के आंतरिक सकुर्लर की लिमिट के हिसाब से उनका क्‍लेम सही तरीके से जारी किया गया था। इस पर अय्यर ने कहा कि एक आंतरिक परिपत्र उसके नुकसान के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। उसके दावे को पॉलिसी कंडीशन के अनुसार सैटल करना चाहिए।
इस पर बीमा कंपनी से कोई जवाब नहीं मिलने पर उन्‍होंने दक्षिण मुंबई उपभोक्ता फोरम में शिकायत की। बीमा कंपनी ने तर्क दिया कि यदि उन्‍हें दावे के अमाउंट पर विवाद करना था, तो उन्‍हें चेक डिपॉजिट नहीं करना चाहिए था। फोरम ने इस आपत्‍ित को खारिज करते हुए कहा कि अय्यर ने डिस्‍चार्ज वाऊचर पर साइन नहीं किए हैं। यह बीमा कंपनी की गलत ट्रेड पॉलिसी को जाहिर करता है।
फोरम ने कहा कि बीमा कंपनी को 1996 में जब मूल शर्तें लागू की गई‍ं थी, उसी के अनुसार पालन करनी होंगी। फोरम ने कंपनी को 31 दिसंबर 2015 को निर्देश दिया कि वह बकाया 43 हजार 916 रुपए और उस पर नौ फीसद वार्षिक ब्‍याज की दर के साथ 31 दिसंबर 2010 से बकाया अय्यर को देगा।

इसके साथ ही 3000 रुपए मानसिक प्रताणना के लिए और दो हजार रुपए मुकदमेबाजी के देगी। यानी भले ही इंश्‍योरेंस का कॉन्‍ट्रेक्‍टर साल दर साल रिन्‍यू होगा, लेकिन यह सिर्फ पॉलिसी की अवधि को ही बढ़ाते हैं। इससे बीमा कंपनी के द्वारा एक तरफा मूल शर्तें और परिस्थितियों को नहीं बदला जा सकता।

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