Friday, July 16, 2010

मुंबई के आईवीएफ क्लिनिकों से कहा है कि वे उनके वाणिज्य दूतावासों से संपर्क किए बिना उनके नागरिकों को किराये की कोख की सुविधा न दें।

मुंबई समेत देश भर में धड़ल्ले से सरोगेसी का धंधा जोरों पर है, लेकिन न तो सरकार और न ही न्यायपालिका इस पर कोई लगाम कस सकी। जन्मे शिशु की नागरिकता को लेकर कई बार संबंधित देशों ने बवाल मचाया, कई बार एथिक्स पर भी सवाल उठे, लेकिन करोड़ों के चोखे धंधे पर जरा भी आंच न आई। हमने भले ही कोई कदम नहीं उठाया, लेकिन आठ यूरोपीय देशों ने शहर के इस तेजी से बढ़ते बिजनेस को रोकने की पहल की है। उन्होंने मुंबई के आईवीएफ क्लिनिकों से कहा है कि वे उनके वाणिज्य दूतावासों से संपर्क किए बिना उनके नागरिकों को किराये की कोख की सुविधा न दें। क्लिनिकों से कहा गया है कि वे इलाज से पहले विदेशी नागरिकों से अपने वाणिज्य दूतावासों से संपर्क करने को कहें। जर्मनी, फ्रांस, पोलैंड, चेक गणराज्य, इटली, नीदरलैंड, बेल्जियम और स्पेन ने मुंबई में दस से अधिक आईवीएफ केंद्रों को अधिसूचित किया है कि वे उनके देशों के नागरिकों को सरोगेसी इलाज की सुविधा न दें। वाणिज्य दूतावासों ने कहा है कि उनके देश में किराये पर कोख लेना अवैध है। मामला कितना गंभीर है, यह इस बात से ही समझा जा सकता है कि भारत में किराये की कोख का बाजार 1000 से लेकर 5000 करोड़ रुपये के बीच है। कई बार महिलाओं को परिवार या पति द्वारा मजबूर किए जाने के मामले भी सामने आए हैं। कुछ लाखों रुपयों के लालच में कई महिलाएं एक से अधिक बार भी कोख किराए पर देती पाई गई हैं। इसके अलावा, कई बार सरोगेट मदर को वायदे से कम रकम दिए जाने जैसे धोखाधड़ी के मामले भी सामने आए। जिन क्लिनिकों को वाणिज्य दूतावासों का पत्र मिला है उनमें अधिकांश ने इस कदम का स्वागत किया है। प्रसूति विशेषज्ञ डॉ. अंजलि मालपानी का कहना है, 'किराये की कोख को लेकर कई नैतिक मुद्दे अभी तक स्पष्ट नहीं हैं। लेकिन हमने एहतियात लेना शुरू कर दिया है कि नये शिशुओं को उनके देशों में समस्या का सामना न करना पड़े और डॉक्टरों को इस पहलू से वाकिफ होना चाहिए।' लीलावती और हीरानंदानी अस्पतालों के डॉक्टरों ने भी इस कदम का स्वागत किया है। उन्होंने कहा यह पत्र हमारे भविष्य के लिए काफी महत्वपूर्ण है। सरोगेसी के कानूनी विशेषज्ञ अमित खरकानिस के अनुसार भारत में इस बारे में एक ठोस कानून की तात्कालिक आवश्यकता है और केंद्र को युद्धस्तर पर इस मुद्दे को उठाना चाहिए। उन्होंने कहा, 'आठ देशों द्वारा लिया गया निर्णय पूरी तरह शिशुओं के भविष्य के हित में है। भारत को भी सरोगेसी को इंडस्ट्री के रूप में अनुमति नहीं देनी चाहिए। लिहाजा नियमन की तात्कालिक जरूरत है।'

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