अपने जीवन काल में ही
किवदंती बन चुके बालासाहेब ठाकरे की मौत ने उनके कद को अतुलनीय रूप से ऊंचा कर
दिया और साबित कर दिखाया कि किसी की मौत ही उसकी जिंदगी का पैमाना होती है।
शाम 6 बजे राजकीय सम्मान के साथ मातमी बिगुल बजने और चंद मिनटों बाद मंत्रोच्चार के बीच जब उनका पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन होने लगा तो ऐसा लगा कि बगल में हरहराता कर हिलोरें मारता समंदर भी शांत होकर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि दे रहा हो। बगल में ही ढल रहे सूरज ने भी मानो अपनी गति रोक ली थी और सिंदूरी शाम बाला साहेब की चिताग्नि से और भी दैदीप्यमान हो चली थी
शाम 6 बजे राजकीय सम्मान के साथ मातमी बिगुल बजने और चंद मिनटों बाद मंत्रोच्चार के बीच जब उनका पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन होने लगा तो ऐसा लगा कि बगल में हरहराता कर हिलोरें मारता समंदर भी शांत होकर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि दे रहा हो। बगल में ही ढल रहे सूरज ने भी मानो अपनी गति रोक ली थी और सिंदूरी शाम बाला साहेब की चिताग्नि से और भी दैदीप्यमान हो चली थी
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